हमे प्रशन प्राप्त हुआ कि क्या साधना करते समय ब्रह्मचर्य रखना आवश्यक है? उस प्रशन का उत्तर हम आपको देते है । यह जो प्रशन हमे प्राप्त हुआ था यह बीज मंत्र साधना के विषय मे पूछा गया था परन्तु हम केवल उसी साधना की बात न करके ब्रह्मचर्य के विषय मे और साधना से सम्बन्ध के विषय मे आपको बताते है । ब्रह्मचर्य का अर्थ क्या है ?ब्रह्मचर्य का अर्थ है ब्रह्म जैसी चर्या स्वयम के ब्रह्म स्वरूप को समझने वाला ही ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है । ब्रह्मचर्य का बहुत ही महत्व है किसी साधना में और कुछ साधनाओ में तो इसको अत्यंत ही आवश्यक माना जाता है ।
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सबसे पहले हम चर्चा करते है विस्तार में कि ब्रह्मचर्य कैसे ब्रह्म जैसी चर्या है । ब्रह्म जैसी चर्या का अर्थ है ईश्वर जैसी चर्या । ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल आज के समय मे शारीरिक तल पर जाना जाता है और बताया जाता है । आज के समय मे ब्रह्मचर्य का अर्थ है वीर्य का निरोध । शारीरिक संबंध न बनाना । परन्तु वास्तव में इसका सम्बन्ध आपके आंतरिक और मानसिक तल से है । मानसिक और आंतरिक तल से अर्थ है केवल आपके शरीर नही परन्तु आपकी भावनात्मक जगत और उस ऊर्जा से सम्बन्ध है ब्रह्मचर्य का ।
पहले तो आज के समय मे जो ऊपरी तल है साधना में ब्रह्मचर्य की परिभाषा का उसी तरीके से बात करते है । तो उसका उत्तर यह है कि यदि आप कोई भी संकल्पवत पूजा आदि कर रहे कि मैं इतने दिन में इतने मन्त्र इस कार्यसिद्धि के लिए करूँगा तो हां यह आवश्यक है । परन्तु यह साधना का एडवांस्ड लेवल है यह साधना की वह स्टेज है जिसमे की साधक उस स्थिति में , जब कि उसका अपनी इन्द्रियों के भोग आदि से हट कर एकाग्र चित्त हो कर किसी लक्ष्य साधन में संलग्न और समर्पित होने में सक्षम हो चुका होता है ।
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यह stage है साधना की second स्टेज । जैसे कि हम हमेशा कहते है कि यदि पढ़ाई आदि में कोई specialisation करते है जैसे लॉ साइंस आदि इत्यादि तो वह सीधा नही करते । उसके लिए हमारी नर्सरी lkg 5वी 10स्वी की बोर्ड परीक्षा किन्ही मुख्य विषयो पर 11वी 12वी और bachelors आदि भी आवश्यक है बिना इसके specialisation सम्भव नही । वैसे ही मन्त्र साधना भी है तँत्र साधना भी है शक्ति साधना भी है । और यह नर्सरी से ले के बैचलर्स को छोड़ कर अक्सर साधक specialisation की तरफ भागते है । और फिर उसका परिणाम क्या होता है ? कुंठा मानसिक व्याधियां illusions , पथ हीनता और कुछ लोगो के साथ इससे भी अधिक समस्याएं । नही मैं आपको डरा नही रहा अपितु सच्चाई से अवगत करवा रहा हूँ की संकल्पवत साधनाये जैसे कि महाविद्या साधना या किसी और महामंत्र की साधना तब तक न करे जब तक आप पूर्ण रूप से परिपक्व न हो ।
अब बात करते है साधना के first स्टेज जिसमे की बीज मंत्र और भी बहुत सारी विधिया है । बीज मन्त्र साधना प्रथम stage इसलिए है क्योंकि यह शुरुआत है स्वयम में उस सम्बन्धित देवी देवता इष्ट या महामंत्र की ऊर्जा को उत्पन्न करने की उनसे कृपा प्राप्त करने की । जैसे हम किसी भी भाषा को सीखने से पहले उसके अक्षरों को समझते जैसे के क ख ग आदि ,मात्राएं और फिर ही हम जान पाते है कि अक्षर कैसे जोड़ने है कैसे शब्द बनाने है और एक दिन आता है जब काव्य रचना भी हम करते है । बीज मंत्रो से महामंत्रों की यात्रा भी ऐसी ही है बीज मंत्र क ख ग है और महामंत्र साधना काव्य रचना ।
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बात ब्रह्मचर्य की करते है ब्रह्मचर्य एक स्थिति है मन की जिसमे कि साधक साधना काल मे स्वयम पर नियंत्रण रख पाता है वह मन का गुलाम नही रहता अपितु स्वयं पर नियंत्रण स्थापित कर के स्थिर चित्त होता है, यह सभी जानते है परन्तु जानने लायक बात एक और भी है यह मानसिक स्थिति आती कब है? यह मानसिक अवस्था आती है ऊर्जा के रूपान्तरण से । जब हम बीज मंत्रो आदि का जाप करते है तो एक दिव्य ऊर्जा उत्पन्न होती है हमारे अंदर जो कि हमारे मानसिक तल में काम क्रोध लोभ आदि को nuetralise करती है और हमे हमारे ब्रह्म स्वरूप का दर्शन देती है ध्यान की हमारे चित्त की शुद्ध अवस्था में आनन्द का रस हमे प्राप्त होता है । वह आनन्द की अनुभूति ऐसी है जो कि सभी प्रकार के दोषों का शमन कर हमें सशक्त करती है । आखिर कामेच्छा भी तो एक विचार है और विचार भी एक ऊर्जा । जब सभी प्रकार की उर्जाओं का nuetralisation होता है तो यह मानसिक अवस्था हमे स्वयंतः ही प्राप्त होती है ।
परन्तु इस ऊर्जा इस विचार का दमन करने का अर्थ साधना नही है यदि हम इसका दमन करेंगे तो यह ऊर्जा ही हमारे मानसिक अवसादों का कारण भी बन जाती है । तो प्रशन का उत्तर हुआ कि धीरे धीरे साधना से इस अवस्था को प्राप्त करे । और धीरे धीरे ही मन को नियंत्रित करे । और यदि आप संकल्पवत साधना नही कर रहे है तो ब्रह्मचर्य पालन धीरे धीरे समय के साथ आपमे आएगा ही । परन्तु साधना आरम्भ में ही forcefully इसे ज़िन्दगी में ना लाकर उस मन्त्र ऊर्जा उस साधना ऊर्जा को स्वयं में महसूस करे उसी ऊर्जा से रूपान्तरण होगा आपकी आन्तरिक स्थिति का और वह कामेच्छा या वे विचार स्वमतः ही समाप्त हो जाएंगे । दो बातें आपको अंत मे बोलता हूँ । एक energy can neither be created nor be destroyed it can only be diverted . So keep on moving in the way to transform your energy and all the brahmcharya which os called celibecy will prevail .और दूसरा है धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होए माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आरे फल होए । कबीर जी का यह दोहा साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त है । सब कुछ धीरे धीरे होता है अतः साधना में जल्दी नही धैर्य की ज़रूरत है ।
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