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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ह्रीं बीज मंत्र और तंत्र

ह्रीं बीज मंत्र और तंत्र      मित्रो जैसे कि पिछली पोस्ट में मैं के आपको ह्रीं बीज का आपके शारीरिक संतुलन के बारे में बताया । अब हम आपको ह्रीं बीज मंत्र के कुछ मन्त्र प्रयोग  और तंत्र प्रयोग जिनसे की कार्यसिद्धि होती है , से अवगत करवाएंगे। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7009688414   फोन               0091- 7009688414 ह्रीं बीज जैसे कि मैंने आपको पहले बताया मा दुर्गा  से संबंधित  है। इस बीज मंत्र के साधारण प्रयोग से कार्यसिद्धि प्रयोग तक है। जैसे कि हमने पहले बताया कि भगवान शिव और  माँ दुर्गा  तन्त्र के अधिष्ठाता है। अतः इस मंत्र से तान्त्रिक प्रयोग और अनंत शक्ति समाहित है । इस बीज मंत्र के द्वारा साधक वशीकरण सम्मोहन मोहन और आकर्षण शक्ति का स्वामी बन सकता है। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7009688414   फोन               0091- 7009688414  इस मंत्र के जाप से व्यक्ति का प्रभामंडल विकसित जोटा है और व्यक्तित्व में निखार आता है।  व्यक्ति  या साधक  जो भी इस मं

ह्रीं बीज और इसके लाभ

    मित्रो जैसे कि पिछली पोस्ट में आपको ॐ के कुछ रहस्यो से अवगत करवाया गया। इस पोस्ट में आपको  ह्रीं बीज से अवगत करवाऊंगा। ह्रीं बीज क्या है ? हमारी जीवन मे कैसे यह बदलाव ला सकता है और हमारी शक्ति प्रभाव का विस्तार और विचार शुद्धि कैसे कर सकता है यह मंत्र। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7009688414   फोन               0091- 7009688414     जैसे कि बीज मंत्रो कस बारे में हमने आपको पिछली पोस्ट में बताया कि बीज मंत्र क्या है और कौन कौन से है । ह्रीं उन बीज मंत्रो में अत्यंत महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है। और स्थान भी। ह्रीं  शक्ति बीज है । इस बीज मंत्र का संबंध आदि शक्ति मा दुर्गा से है और उनकी कृपा प्राप्ति में यह मंत्र अत्यंत फलदायी है। इस मंत्र के जाप से हमारे शारीरिक विकास , मानसिक संतुलन ,विचार शुद्धि , और सम्पन्नता प्राप्ति सब कुछ संभव है। सबसे पहले हमें जान लेना चाहिए कि बीज मंत्र कार्य कैसे करते है । जब एक साधक शुद्ध अवस्था मे एकाग्रचित्त हो कर किसी भी बीज मंत्र का जाप पाठ ध्यान करता है तो उस बीज मंत्र के उच्चारण  से

रहस्यो से भरा है ॐ

क्या है ॐ का रहस्य  पिछली पोस्ट में मैंने आपको ॐ का प्रयोग मंत्रों में क्यों होता है इससे आपको अवगत करवाया और जैसा कि मैंने पिछली पोस्ट में कहा था कि मैं आपको ॐ के तीनों भागों अ उ और म से अवगत करवाऊंगा और यथाशक्ति आपको अमात्रा के रहस्य भी समझाऊंगा।  ओम के बारे में पिछली पोस्ट में आपको विवरण दिया गया उसमें मैंने आपको बताया की नाभि क्षेत्र, कंठ क्षेत्र और कपाल क्षेत्र आपके सभी चेतना क्षेत्रों में और ऊर्जा क्षेत्रों में ॐ सकारात्मक प्रभाव देता है जब एक साधक सांस भर कर ओम बोलता है और ओम की ध्वनि तीन भागों में बोलता है तो सबसे पहले उसका नाभि क्षेत्र और हृदयक्षेत्र से कपाल कस क्षेत्र  पर प्रभाव पड़ता है । किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265    फोन               0091- 7009688414             अ बोलने से मूलाधार चक्र स्वाधिष्ठान चक्र और मणिपुर चक्र इन में कंपन पैदा होती है और आपकी जठराग्नि प्रदीप्त होती है उसके साथ-साथ साधक अंतर्मुखी होता है और ध्यान की गहराइयों में जाने के लिए तैयार होता है । उ के द्वारा ह्रदय चक्र अना

क्यो प्रत्येक मंत्र में प्रयोग होता है ॐ?

क्यों प्रत्येक मंत्र में प्रयोग होता है ॐ?    मंत्रो के ज्ञान की श्रृंखला में बीज मंत्रो के बारे में लिखने से पहले हम यह बताएंगे कि क्यों प्रत्येक मंत्र के आरंभ में ॐ का प्रयोग होता है। जैसे कि ॐ ऐं ह्रीं क्लीं  चामुण्डाये विच्च:  या कोई भी अन्य मंत्र आप जिसका जाप करते है के आरंभ और किसी  के अंत मे भी ॐ का प्रयोग होता है। हम इसके शारीरिक कारण, भौतिक कारण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण कण सबके बारे  में आपको अवगत करवाने का प्रयास करेंगे। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265    फोन               0091- 7009688414        ॐ जैसे कि हम सभी जानते है कि सृष्टी का आरंभ ऊर्जा से हुआ । वह ऊर्जा ॐ में नाद से ही उत्पन्न हुई । ऋग्वेद में हिरण्यगर्भ सूक्त  और नासदीय सूक्त में ॐ की महिमा का गुणगान किया गया है। इसमे लिखा गया है कि  सृष्टि से पहले सत नही था असत भी नही अंतरिक्ष भी नही था आकाश भी नही था  न मृत्यु थी न जीवन था।  आगे जो हमारे बाकी ग्रन्थ  जैसे मांडूक्य उपनिषद भी ॐ का बखान और महिमा मंडन करते है। कहा जाता है इस सृष्टी का आर

रहस्यमयी बीज मंत्र

मंत्रो के प्रयोग में बीज मंत्र स्वयं में अन्यतम है । पहले हम यह जानेंगे कि बीज मंत्र है क्या फिर जानेंगे कि कौन कौन से है बीज मंत्र और क्या है उनका प्रभाव। जैसे कि हम सभी जानते है कि यदि हमे किसी भी वस्तु का निर्माण करना है तो उसके लिए सबसे पहले उसका मूल अर्थात (base)होना ज़रूरी है। यदि आप किसी भवन का निर्माण करना चाहते है तो  उसकी नीव पक्की और मजबूत किये बिना उस भवन का निर्माण नही किया जा सकता तो मुख्यतः बीज मंत्र वह नीव है जिस पर मंत्रो की सत्ता और कार्यसिद्धि की प्रबलता टिकी है। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7009688414   फोन               0091- 7009688414                    इस सम्पूर्ण जगत का निर्माण ऊर्जा से ही हुआ। ऊर्जा से ही यह जगत चलायमान है। ऊर्जा से ही सभी पेड़, पौधे ,पशु व्यक्ति इस संसार मे जीवित है। बिना बीज बोए हम किसी फूल फल अथवा अन्य पदार्थ  की प्राप्ति नही कर सकते। मनुष्य का निर्माण भी इसी प्रकार है।  बीज मंत्र वह नीव है जिसके बिना हम पूर्ण मंत्रो का प्रभाव प्राप्त नही कर सकते। प्रत्येक इष्ट प्रत्य

क्यों मंत्र कीलित कर दिए गए?

क्यों मंत्र कीलित कर दिए गए? मंत्रो से कार्य सिद्ध नही हो पाने के कारण क्या है? आज के समय मे मंत्रो के प्रयोग से सिद्धि प्राप्त क्यों नही हो पाती। कार्यसिद्धि में मंत्रो का प्रयोग सुलभ क्यों नही है। आज हम इस बारे में चर्चा करेंगे। प्राचीन गर्न्थो के अनुसार महादेव भगवान शिव ने तन्त्र का निर्माण किया। इसके षट्कर्म निर्मित किये गए और विधिया भी। इन विधियों में मंत्रो का महत्वपूर्ण स्थान रखा गया।  महाकाल शिव ने जब मंत्रो का निर्माण किया तो साथ ही उनके दुष्प्रभाव  और दुरुपयोग न हो इसके लिए उन्होंने इस मंत्र ज्ञान को निर्मित किया और उन्हें कील भी दिया। कीलन का अर्थ है ताला लगा देना एक तरह से उन्होंने इन मंत्रो को ताला लगा दिया ताकि इनका अपात्र व्यक्ति प्रयोग न कर सके।     किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7009688414   फोन               0091- 7009688414              कीलन के साथ साथ उन्होंने प्रत्येक मंत्र की उत्कीलन विधि भी बनाई । उत्कीलन विधि से अर्थ है के उन मंत्रो पर जो कीलन किया गया उन मंत्रो का कीलन विधिवत खोलना।

मारण तन्त्र के प्रयोग(1)

मारण तन्त्र के प्रयोग (1)       जैसे कि मारण तन्त्र   के बारे में पहले भी हमने कुछ बाते लिखी। इसके सदुपयोग और दुरुपयोग के बारे में आपको थोड़ा सा पहले भी बताया गया। इस का कुछ विस्तार इस पोस्ट में भी किया जाएगा । मित्रो मारण तन्त्र ऐसी क्रिया है जिसका निर्माण आपके अंदर के बुरे विचारों ,बुरे ख्यालो ,स्वप्नों और  बाहर के शत्रु रूपी समस्याओं को खत्म करने के लिए किया गया। बाहर के शत्रु रूपी से हमारा अर्थ है ग्रहों की समस्याएं , रास्ते की रुकावट, किया हुआ तन्त्र ,या फिर अन्याय रूपी शत्रुता। यह हम यह बताना चाहेंगे कि शत्रुता एक विचार है और शत्रु मारण का अर्थ उस व्यक्ति का मारण बिल्कुल नही है परंतु उस शत्रु रूपी विचार का मारण है। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265    फोन               0091- 7009688414       मारन तन्त्र में जो इष्ट पूजा की जाती है वह है भगवान महाकाल , भगवती दुर्गा का महिषमर्दिनी रूप, महाकाली, धूमावती, भैरव जी। एक साधक इनके मंत्रो का उत्कीलन करके इनकी पूजा सामग्री का प्रयोग करके और विधि विधान से तन

तन्त्र में मंत्रो का महत्व

तन्त्र में मंत्रो का महत्व मंत्र क्या है? तन्त्र में इनका क्या महत्व है यह जाने बिना तन्त्र  द्वारा कार्य सिद्धि प्राप्त नही की जा सकती। हमारी आंतरिक शक्ति की जागृति से ले कर हमारी बाह्य शक्तियों की प्राप्ति तक मंत्र का महत्व पूर्ण कार्य है। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265    फोन               0091- 7009688414    प्रत्येक तंत्र क्रिया के इष्ट के मंत्रों का उच्चारण होता है जिसकी लय क्रिया पर निर्भर करती है। मारण क्रिया के इष्ट श्री महाकाल जी महाकाली और अन्य देवता होते हैं इनकी पूजा उग्र रुप से होती है तो निश्चित ही जो लय उच्चारण मंत्रों का होगा वह उग्र होगा सामग्री के साथ साथ मंत्रों का उच्चारण भी एक ऊर्जा उत्पन्न करता है जो आंतरिक भी होती है और बाह्य भी मनुष्य के आंतरिक ऊर्जा क्षेत्र से बाहर के ऊर्जा क्षेत्र तक विस्तार होता है और यह मुख्य रुप से मंत्रों के उच्चारण से ही होता है स्तंभन क्रिया में मां बगलामुखी ,भैरव जी और अन्य देवताओं की पूजा अर्चना और ध्यान होता है और उन्हीं के मंत्रों का उच्चारण वश

तंत्र और आयुर्वेद

तन्त्र और आयुर्वेद तंत्र और आयुर्वेद दोनों का बहुत महत्वपूर्ण संबंध है जैसे कि मैंने आपको बताया तंत्र ज्योतिष आयुर्वेद योग और प्राचीन विद्या सभी का समन्वय है। अब मैं आपको तंत्र आयुर्वेद से संबंध जड़ी बूटियों से संबंध के बारे में विवरण देने की कोशिश करूंगा जैसे कि तंत्र में नक्षत्र ज्योतिष और क्रिया और क्रिया के इष्ट महत्वपूर्ण है वैसे ही तंत्र में जड़ी बूटियों का ज्ञान होना यह भी बहुत आवश्यक है एक सफल तांत्रिक संबंधित तंत्र में प्रयोग होने वाली सामग्री के बारे में भी कौशल्य प्राप्त करता है कौन सी क्रिया में कौन सी सामग्री कार्य सिद्धि के लिए प्रयोग की जाएगी यह भी व्यक्ति को पता होनी चाहिए जितना महत्व बन चूका है उतना ही महत्व सामग्री का भी है सामग्री के बिना भी तंत्र अधूरा है तंत्र की अलग अलग विधियां है और अलग-अलग सामग्रियां यदि साधक को सामग्री और उसके प्रभाव के बारे में भली-भांति ज्ञान ना हो तो वह उच्चतम स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकता और कार्यसिद्धि को प्राप्त नहीं कर सकता कार्यसिद्धि संभव ही पूर्ण ज्ञान के उपरांत हो पाती है। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्

तन्त्र और ज्योतिष

तन्त्र और ज्योतिष  जैसा कि हम आपको पिछली पोस्ट में तन्त्र और योग के बारे में अवगत करवाया। अब हम आपको तन्त्र में ज्योतिष की भूमिका के बारे में अवगत करवाएंगे। जैसे कि पहले भी हमने आपको बताया कि तन्त्र , आयुर्वेद, योग,ज्योतिष,मंत्र, और यन्त्र विद्या का समनव्य है । तन्त्र में सभी विद्याएं अपना अपना भाग निभाती है। ज्योतिष भी अपना भाग निभाता है। तन्त्र की किसी भी क्रिया को बिना नक्षत्र ,ऋतु और ग्रह गोचर के करना उसकी सफल प्रयोग की संभावना को कम करता है । पंचांग के बिना तांत्रिक विधियां अधूरी है। जैसे कि वशीकरण के लिए सम्बन्धित ऋतु संबंधित ग्रह का गोचर और सम्बंधित नक्षत्र का होना कार्यसिद्धि को और प्रबल और सुलभ बना देता है । किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265    फोन               0091- 7009688414            तन्त्र और तांत्रिक क्रियाओं में ग्रहों का बहुत महत्व है। मान लीजिए के किसी की कुंडली में कोई ग्रह कोई योग या कुछ ऐसी स्थिति हैं जो कि उसके जीवन को प्रभावित कर रही है।  तो तन्त्र क्रियाओ से उसे सही किया

तन्त्र और योग( इनका संबंध)

   तन्त्र और योग (इनका संबंध) तंत्र जैसे कि हमने पहले बताया कि आयुर्वेद, ज्योतिष, योग और इन सब का समनव्य है यदि आप तंत्र को सही मायने में जानना चाहते हैं तो आपको योग की यात्रा अति आवश्यक है । एक तांत्रिक तब तक तांत्रिक नहीं जब तक उसने योग और योग के रहस्य नहीं जाना। एक सफल तांत्रिक होने के लिए व्यक्ति को योग और योग की सही परिभाषा और इसके बारे में ज्ञान होना अति आवश्यक है। जो व्यक्ति तंत्र और सिर्फ तंत्र को ही प्रमुख मानता है वह या तो तन्त्र को जान ही नही पाता या फिर किसी  गलत व्यक्ति या किसी गलत क्रिया में फस कर पथ भृष्ट हो जाता है ।      यहां यह कहना भी उचित होगा की योग के बिना तंत्र अधूरा है जब तक आप अपने आंतरिक तंत्र को नहीं समझते तब तक आप अपने बाह्य और सृष्टि तंत्र और महादेव द्वारा निर्मित इस महाविज्ञान को समझ नहीं सकते । इस विद्या को जानने के लिए और इसमें संपूर्णता प्राप्त करने के लिए आपको ज्योतिष ,आयुर्वेद ,योग और उसके साथ मंत्रों का, जड़ी बूटियों का और उनके आंतरिक और बाह्य प्रभाव को जानना ही पड़ेगा । इन सब को  जाने बिना यह संभव नहीं है इस विद्या को प्राप्त करने के लिए आप

मारण तन्त्र और इसका सदुपयोग

मारण तन्त्र और इसका सदुपयोग  मारण तन्त्र के वारे में हमने आपको पहले पिछली पोस्ट में अवगत करवाया। (देखे मारण तन्त्र सत्य या मिथ्या) अब आपको मारण तंत्र  के प्रयोगों से इनके इष्ट  इसका महत्व हमारे जीवन मे क्या है और इसका निर्माण क्यों हुआ यह बताने की आपको कोशिश करेंगे।  मारण तंत्र जैसे कि आपको पहले बताया  मारण तन्त्र का अर्थ है किसी व्यक्ति का मारण परन्तु सत्य सिर्फ ये नही है सत्य ये भी है कि इस तंत्र का प्रयोग आपके अंदर के विचारों जो कि आपके जीवन  मे द्वेष ईर्ष्या या क्रोध आदि ला सकते है। या आपकी और आपके व्यक्तित्व को निखारने में बाधक हो सकते है उनका मारण करना । किसी आने वाले कष्ट का मारण करना  या किसी आई हुई विपत्ति का मारण करना या फिर आपके ऊपर किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या है उससे बचाव करना। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265    फोन               0091- 7009688414           मारण तंत्र में तीनों प्रकार की विधियां जैसे कि ध्यान तंत्र मंत्र या कुछ सिद्ध की हुई सामग्री का प्रयोग यह सभी प्रकार के प