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फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महाविद्या तारा(कल्पना तत्व)

 मित्रों जैसे पिछली पोस्ट में हमने आपको मां तारा के बारे में बताया उनके तीन रूप उग्र तारा नील सरस्वती और एक जटा इनसे अवगत करवाया । इनका परिचय आपको दिया भगवती भगवती तारा के इन 3 रूपों के बारे में हम आपको बता चुके हैं । अब हम चर्चा करेंगे भगवती तारा और उनके तत्व के बारे में भगवती तारा का मुख्य तत्व क्या है ? मां तारा का मुख्य तत्व है कल्पना। मां तारा कल्पना शक्ति हमारे भीतर जो प्रथम विचार आता है और इस विचार की क्रियात्मक रूप से ले कर पूर्णता तक मां तारा का ही आधिपत्य है। हमारे जीवन और जीवन की सभी क्षेत्रों में विकास कल्पना से ही तो होता है हम जब भी कोई भी कार्य करते हैं उससे पहले की कल्पना जरूर करते हैं । जैसा कि पिछली पोस्ट में भी मैंने बताया था ब्रह्मांड में जितना भी ज्ञान है इधर-उधर फैला हुआ चाहे विज्ञान का है ज्योतिष का है या किसी और चीज का है तारा तत्व ही है और उनकी आराधना से हमें ज्ञान और कल्पना दोनों मिलते हैं ।          किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265   फोन               0091- 7009688414          

महाविद्या तारा (स्वरूप और रूप)

पिछली पोस्ट में हमने आपको महाविद्या माँ तारा से अवगत करवाया पढ़े (महाविद्या माँ तारा) । थोड़ा सा परिचय दिया। इस पोस्ट में हम आपको मा तारा  से सम्बंधित अन्य रहस्यो के बारे में बताएंगे। महाविद्या तारा से महाज्ञान की प्राप्ति तो होती ही है उसके साथ साथ साधक  अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करने के बाद मोक्ष को प्राप्त होता है। और माँ के एक जटा स्वरूप में अक्षोभ्य शिव के साथ स्थान मिलता है।      महाविद्या तारा मोक्ष की देवी हैं। मुख्यतः मा की पूजा तांत्रिक विधियों से होती है। यह एक वाम मार्गी विद्या है जिसमे तन्त्र में प्रयोग होने वाले पंच मकार से साधना होता है। पंच मकार ( मद्य मास मत्स्य मुद्रा मैथुन) पंच म कार के बारे में दो मत है एक ध्यान और दूसरा तन्त्र जो साधक मास मंदिर मैथुन मुद्रा और मत्स्य से साधन नही कर सकते उनके लिए ध्यान के पांच मकार की विधिया भी है इसके लिए अलग पोस्ट में व्याख्यान किया जाएगा।         ब्रह्मांड में जितना भी ज्ञान  का विस्तार है वह मूलतः महाविद्या तारा के अधीन ही है या ये कहे मा तारा ही वो ज्ञान है। माँ तारा का साधक ब्रह्मांडीय  रहस्यो को जानने वाला होता है    । 

महाविद्या माँ तारा

     पिछली कुछ पोस्ट में  हमने आपको दस महा विद्या   ,  महाविद्या महाकाली , महाकाली साधना और क्रीं बीज मंत्र साधना के बारे में बताया था साथ ही हमने आपको सभी दुखो का नाश करने वाली भगवती महाकाली के स्तोत्र महाकाली अष्टक से अवगत करवाया। दस महाविद्या श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम अब आपको महाविद्या तारा के बारे में अवगत करवाएंगे। इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि कौन है माँ तारा और क्या है उनका रहस्य ? क्या है स्वरूप उनका और किस प्रकार से यह महाविद्या की कृपा यदि हम प्राप्त हो जाये तो हमारे जीवन में बदलाव  लाने में सक्षम है।      माँ  तारा तांत्रिको की प्रमुख देवी है। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा नाम से जाना जाता है।भगवती तारा के तीन स्वरूप है तारा, नीलसरस्वती और एकजटा।मा तारा की साधना से  शत्रुओ का नाश होता है और इनकी साधना अपार ऐशवर्य  और सौंदर्य प्राप्ति के लिए की जाती है।  महाविद्या तारा को नील तारा भी कहा जाता है । मां तारा शिव की माँ भी कहलाती है । यह सरस्वती के समान ज्ञान की देवी है । अगर यह कहा जाए कि सरस्वती मां की शक्तियों को हज़ार गुना करके एक माँ नील तारा की शक्ति

स्फटिक की शक्ति

पिछली पोस्ट में  हम आपको श्रीं साधना   के बारे में बताया महालक्ष्मी साधना के बारे में बताया जिसमे स्फटिक  श्री यंत्र और स्फटिक माला का प्रयोग आपको बताया। स्फटिक माला का प्रयोग क्यों होता है साधना सामग्री में यह अब हम आपको बताएंगे। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7009688414  फोन               0091- 7009688414 ईश्वरीय शक्ति एवं प्रकाश से भरपूर स्फटिक का प्रयोग  प्राण ऊर्जा को विकसित करने तथा नकारात्मक भावनाओं, वातावरण एवं रोगों से बचने के लिए  पुरातन काल से होता रहा है। मन एवं भावनाओं के साथ-साथ शरीर के सातों चक्रों को संतुलित करके स्फटिक उनकी कार्य क्षमता का विकास करता है।           यह अनमोल शक्तिवर्धक सुरक्षा कवच मन, रोग एवं भावनाओं के उद्वेग को शांत कर शरीर व मन की शिथिलता को दूर कर स्वास्थ्य लाभ देता है, आत्मविश्वास और निर्भयता प्रदान कर व्यक्तित्व को निखारता  है। शरीर के सातों चक्रों को संतुलित करके स्फटिक उनकी कार्य क्षमता का विकास करता है। व्यक्ति के चारों ओर एक शक्तिशाली सुरक्षा शक्ति का क्षेत्र  बढा दूस

महाकाली अष्टकम

महाकाली अष्टकम पिछली पोस्ट मैं हमने आपको महाकाली महाविद्या और क्रीं मंत्र प्रयोग के बारे में बताया इस पोस्ट में हम वह श्रृंखला आगे बढ़ाते है। महाविद्या महाकाली के बारे में पोस्ट लिखने और आपको दस महाविद्या से अवगत करवाने की श्रृंखला में हम आज आपसे कालिका अष्टक स्तोत्र के बारे में चर्चा करेंगे कालिका अष्टक में भगवती महाकाली के रहस्यपूर्ण स्वरूप का व्याख्यान किया गया है और उनकी प्रशंसा, वंदना और व्याख्या की गई है । किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265   फोन               0091- 7009688414      यह स्तोत्र कोई भी पढ़ सकता है और मां की कृपा प्राप्त कर सकता है यदि आप किसी प्रकार के कष्ट में है कोई वायवीय बाधा आपको परेशान कर रही है।  शनि राहु आदि के प्रकोप से जूझ रहे हैं या आपके साथ कहीं अन्याय हो रहा है तो यह महा कालिका अष्टक आपकी समस्याओ के समाधान में उपयोगी और कार्य सिद्धि देने वाला हो सकता है ।इसमें साधक को महाकाली मंदिर में जा कर इस स्तोत्र का जप ध्यान इत्यादि करना होता है शुद्धि, ब्रह्मचर्य और नियम पालन अत्यंत आवश्यक

क्रीं बीज मंत्र

 क्रीं बीज मंत्र       दस महाविद्या की श्रृंखला में  इस वक़्त हम महाविद्या महाकाली के  बारे में कुछ पोस्ट में चर्चा कर रहे है। पिछली पोस्ट में हमने आपको महाविद्या महाकाली के स्वरूप ,साधक गुण , और किसे यह साधना करनी चाहिए और क्यों , यह सब  बताया। अब इस पोस्ट में  हम आपको  क्रीं बीज मंत्र साधना बताएंगे।            जैसे ह्रीं और श्रीं के बारे में पिछली पोस्ट में हम बता चुके है । ह्रीं शक्ति बीज है तो श्रीं लक्ष्मी बीज वैसे ही क्रीं महाकाली की साधना का बीज मन्त्र है । इसकी साधना तीनो तरीको से की जा सकती है। मानसिक ,उपांशु और वाचिक। जैसे ह्रीं शक्ति का प्रतीक है और श्रीं सम्पन्नता का वैसे ही क्रीं बीज मंत्र निर्भयता  और उग्र ऊर्जा का प्रतीक है। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265   फोन               0091- 7009688414                     क्रीं बीज मंत्र की साधना किसी भी प्रकार की वायवीय बाधा, कष्ट, शत्रुओ से छुटकारा पाने के लिए तथा  सभी प्रकार से रक्षा के लिए किया जाता है। भगवती महाकाली की यह साधना सामान्य व्यक

महाकाली साधना (mahakali the power)

पिछली पोस्ट में हमने आपको दस महाविद्या   और   महाविद्या महाकाली से अवगत करवाया उनका स्वरूप आदि बताया। इस श्रृंखला में हम अब आपको महाकाली के साधना पथ के बारे में बताएंगे । किस और क्यों महाकाली की साधना करनी चाहिए। और किसे नही करनी चाहिए और क्यों । किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7009688414   फोन               0091- 7009688414      महाकाली साधना एक अति उग्र साधना है। इस साधना पथ पर साधक जब अग्रसर होता है तो उसे विचित्र अनुभव होते है।  सबसे पहले हम महाकाली के साधक में क्या गुण होने चाहिए यह बताएंगे। सर्व प्रथम तो साधक के अंदर पूर्ण समर्पण , श्रद्धा और एकाग्रता होनी चाहिए। महाकाली का साधक शारीरिक रूप से बली होना चाहिए क्योंकि इनकी साधना करते समय  शारीरिक कष्ट आदि  आते है । द्वितीय साधक को   आत्मिक रूप से बलवान होना चाहिए जिससे कि वह मन्त्र शक्ति और ऊर्जा को सह सके और संतुलित रह सके। महाकाली की साधना योग्य गुरु के बिना बिल्कुल नही की जानी चाहिए क्योंकि गुरु कृपा से साधना पथ की कठिनाइयां दूर होती है।       साधक में निर्

महाविद्या महाकाली

 पिछले पोस्ट में हमने आपको दस महाविद्या के बारे में जानकारी दी उनके नाम और स्वरूप के बारे में थोड़ा सा अवगत करवाया ।इसी श्रृंखला में अब हम आपको बताएंगे प्रथम महाविद्या महाकाली के बारे में। महाकाली कौन है? उनका स्वरूप कैसा है? और उनके और उनकी साधना की कुछ बाते। किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7009688414   फोन               0091- 7009688414     दस महाविद्या की दीक्षा देते हुए गुरु यह भी देखता है कि शिष्य किस महाविद्या को सिद्ध करने योग्य है। किस महाविद्या में उसकी रूचि है । और किस प्रकार की साधना में वह अग्रसर हो पायेगा। मान लीजिये यदि शिष्य सौम्य स्वभाव का है तो वह उसे कमला या अन्य सौम्य कोटि की साधना दीक्षा उसे दी जाती है। क्योंकि उसका कोमल स्वभाव उस उग्र ऊर्जा को नही सम्भाल पायेगा। और यदि शिष्य बली है तो सौम्य कोटि की साधना  स्वभाव से मेल नही खाएगी और शिष्य सफल नही हो पायेगा । अतः आपसे मेरा एक आग्रह ये भी है कि किसी वेबसाइट आदि से मन्त्र पड़ कर साधना न करे अपितु किसी योग्य गुरु की तलाश कर उनकी सेवा कर ही साधना करे। क

दस महाविद्या

दस महाविद्या  पिछली पोस्ट में थोड़ा सा विवरण दस महाविद्या  (देखे दस महाविद्या) के संदर्भ में दिया था । इस पोस्ट में हम आपको दस महा विद्या के रूप नाम वर्ण और उनकी शक्ति से थोड़ा परिचय करवाएंगे । जैसे कि हमने पिछली पोस्ट में बताया कि दस महाविद्या अर्थात  भगवती के दस रूप  जो कि ज्ञान, ध्यान, शक्ति और जीवन मे पूर्णता देने वाले है। अत्यंत रहस्यो से भरी है प्रत्येक विद्या। काली तारा षोडशी छिन्नमस्ता भुवनेश्वरी त्रिपुर भैरवी बगलामुखी   धूमावती मातंगी कमला यह नाम है उन महाविद्यायो के जिनको की ब्रह्मांड के अस्तित्व का कारण कहा जाए तो गलत नही होगा।  अभी हम नीचे आपको इन दस रूपो से अवगत करवाएंगे किसी भी समस्या  के समाधान के लिए संपर्क करे आनन्द हो ज्योतिष केंद्र  व्हाट्स एप्प   0091-7696568265   फोन               0091- 7009688414 काली  शव  पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए है । एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट होने वाली ये है प्रथम और सबसे  विध्वंसक शक्ति है। माँ काली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध क