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पहले हमने बताया था महाकाली विद्या ( देखे महाविद्या महाकाली) के बारे में जिनका वर्ण श्याम है तत्व अंधकार है। फिर माँ तारा (MAHAVIDYA TAARA)जिनका वर्ण नील है और तत्व कल्पना। अब हम बात करेंगे श्री वीीदया के बारे में। कैसा है उनका रूप क्या है उनका स्वरूप वर्ण और शक्ति। महाविद्या श्री विद्या को कई अन्य नामो से पुकारा जाता है राज राजेश्वरी, ललिता, त्रिपुर सुंदरी और ब्रह्म विद्या।किसी भी समस्या के समाधान के लिए संपर्क करे
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मां राज राजेश्वरी से अर्थ है राजाओ के राजा की ईश्वरी। श्री विद्या से अर्थ है सम्पूर्ण जगत के ऐशवर्य की विद्या, त्रिपुर सुंदरी अर्थात तीनो पुरो अर्थात तीनो लोको की सुंदरी। इस पूरे जगत में जो ऐश्वर्य तत्व है जो भी भावनाएं है जो भी आकर्षण है वह श्री विद्या तत्व ही है। त्रिपुर सुंदरी शब्द स्वयं में ही यह सम्बोधन करता है कि तीनों लोकों की सुंदरी। तो तीनों लोकों में जो सौंदर्य है चाहे वह प्राकृतिक है या शारीरिक। प्रसन्नता है या साज सज्जा, फूलो की महक है या संगीत नृत्य की कला, श्री विद्या ही इसे संचालित करती है। श्री विद्या इतनी रहस्यमयी विद्या है कि इसके बारे में पूर्ण रूप से तो शायद ही किसी को ज्ञात हो , परन्तु मैं यथा शक्ति , भगवती पे समर्पण कर के जितना आप तक पहुंच सका उतना ज्ञान और इस महाविद्या की महिमा आप तक लाने का प्रयत्न करूँगा।श्री विद्या का आधिपत्य और विराट सत्ता सृष्टि से ले के ब्रह्मांड तक फैली हुई है। जितनी भी स्वतंत्रता , जितनी भी जीवन जीने की कला है। जितना भी आकर्षण है चाहे वह गुरुत्व आकर्षण है या पुरुष स्त्री का आकर्षण, स्वप्न पूरे करने का आकर्षण है या कर्मठ होने की शक्ति यह श्री विद्या ही है।
माँ के साधक के पास धन ऐश्वर्य सौंदर्य और जीवन जीने की कर्मठता सभी वरदान स्वरूप प्राप्त मिलता है। आकर्षण शक्ति की अधिष्ठात्री श्री विद्या साधक को समाज मे प्रतिष्ठित, सम्माननीय, महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला और परम सौंदर्य से युक्त बनाती है। जैसे फूलो के पास चलती पवन से उनकी खुशबू दूर दूर तक फैलती है। वैसे ही श्री विद्या के साधक का वर्चस्व, आकर्षण और महत्व दूर दूर तक फैलता है। जो व्यक्ति उससे एक बार मिलता है उसे कभी भूल नही पाता। गुणों से युक्त हो कर साधक परम् ऐशवर्य ,उत्तम भोग को भोग कर परम् स्थान प्राप्त कर प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
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श्री विद्या वह साधना है जो कि मूढ़ को भी परम् ज्ञानी, रंक को भी राजा, निराश से निराश व्यक्ति को भी आशावान बना सकती है। श्री विद्या के साधक को कला, गुण, ज्ञान और वर्चस्व और आधिपत्य आदि स्वयं ही प्राप्त होते है। श्री विद्या का साधक उस परम् शक्ति को प्राप्त करता है जिससे कि उसके प्रभाव क्षेत्र में आने पर कोई भी व्यक्ति वस्तु या तत्व उससे आकर्षित हुए बिना नही रह पाता और श्री विद्या का प्रभाव क्षेत्र अनन्त है। सच मे ही श्री विद्या वह महाविद्या है जिसकी कृपा प्रत्येक साधक को प्राप्त करनी ही चाहिए।आगे पोस्टों में आपको सह्री विद्या के लाभ स्वरूप और प्रभाव के बारे में हम अवगत करवाएंगे। किस प्रकार सृष्टी से श्री विद्या का एकात्म है और किस प्रकार श्री विद्या का साधक राज राजेश्वरी की कृपा से साधक राजा के समान हो जाता है। सौंदर्य क्या है और श्रीविद्या का तत्व कैसे है। आकर्षण क्या है और कैसे श्री विद्या का प्रभाव आंतरिक बाह्य आकर्षण का निर्माण करता है।
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