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एकात्म तत्व 2


       परमात्मा बीज रूप में हमे बहुत कुछ देता है परंतु हम ही उलझे रहते है।  जन्म के साथ जो मिलता है साधना से हम सृष्टि को हज़ार गुना दे सकते है । वह शक्ति हम में विराजमान होती है हमे जीवन मिला है निर्माण करने को। हमे जीवन मिला है  इस सृष्टी में इस सृष्टि के लिए यदि हम प्रतिपल कर्मठ नही है और प्रतिपल इस विचार का स्पंदन हमे नही महसूस होता कि हमे सृष्टी और जीवन का कृतज्ञ रह कर और बेहतरी के लिए निर्माण करना है। तो निश्चित ही  हम उस शक्ति से पीठ कर के बैठे है जो कि जीवन के रूप में हमे प्राप्त है। हमे  मन को बनाना है एक दर्पण  के वह  शक्ति का प्रतिबिंब फलित हो सके खुद में दर्शन पा सके हम उस शक्ति का उस महाविद्या तत्व का ।  मन को उस स्थिति में तैयार करना होगा,तैयारी के लिए हमे मन को खाली करना होगा ताकि नए विचार को जन्म दे  पाए।

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                     नया मकान बनाना है तो पुरानी बिल्डिंग को तोड़ना होता है। एकात्म हो कर मन और चेतना की सफाई करनी है। घास पौधे अलग करना है जानना होगा मन मे कौन सी ऐसी चीज़ है जो व्यर्थ संचित है और हमने भृमवश या अज्ञान वश उसे सहयोगी समझ रखा है। एकात्म में ही यह जान पाते है कि जिस घास पात को हमने फसल समझा था असल मे वह फसल नही सिर्फ घास पात है जो फसल के साथ  उग जाता है।

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               फसल को बचाने के लिए  जैसे किसान घास पात की छटाई करता है वैसे ही हमे एकात्म तत्व में हमारे संघर्ष  और निर्माण के  बाद में आत्म मनन करके मन की उस घास पात को छांट कर शुद्ध निर्मित लक्ष्य को बचाने का  सामर्थ्य मिलता है। मन मे  या उस निर्माण में  जो घास पात आदि उपज जाती है उसे  दूर करके ही तो हम सम्पन्नता और निपुणता तक पहुंच सकते है ।  नही तो जैसे उस घास पात की छटाई न हो तो फसल को कीड़ा लग जाता है और  सारी मेहनत व्यर्थ हो जाती है वैसे ही एकात्म तत्व की छटाई के बिन दुर्विचार ईर्ष्या द्वेष और अहंकार या कोई और विचार भी  हमारे निर्माण कार्य में बाधा बन कर हमें सम्पूर्णता प्राप्त करने में आंतरिक व्यवधान प्रस्तुत करते  है।

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              ज्ञान सबसे बड़ी बाधा है ज्ञान अहंकार लाता है जिससे कि हमारी चेतन के द्वार बंद हो जाते है। आपमे यह ख्याल पैदा हो जाना कि सब मैं ही जानता हूँ यह परम बाधा है निपुणता और सम्पन्नता पाने के लिये । एकात्म तत्व ही है जो कि आपको यह  बोध देता है कि जितना जाना है वह तो कुछ भी नही अभी तो और जानना है और समझना है। एकात्म तत्व में जितना जाना उसके साथ के घास पात को साफ करके अपने अंदर आप मन की ज़मीन को अपने अनुभव की भूमि को साफ करते है । शुद्व स्वरूप में आते है और तब आपको बोध होता है कि अभी बहुत कुछ है पाने को । जिस निर्माण में प्रयत्नरत हो कर आपने सब जाना है उस विचार को आगे अग्रसर करने और साथ ही और भी प्राप्तियां करने की शक्ति प्राप्त होती है एकात्म  में।


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              जैसे गर्भ में बच्चा होता है तो सिर्फ गर्भ ही उसकी दुनिया होती है। फिर वह बच्चा  संसार मे आता है चलने लगता है तो  जहां तक कदम जा सके वही उसकी दुनिया है। फिर एक दिन वो स्कूल कॉलेज आदि में जाता है घूमता है फिरता है तो उसकी दुनिया और विस्तृत हो जाती है । जब काम धंदा करता है उसका जगत और विशाल हो जाता है।  यह उदाहरण मैंने इसलिए दी है कि  विचार शून्यता से ले कर  स्तम्भन तत्व की यात्रा भी तो कुछ ऐसी ही है । जैसे जैसे हम जानते जाते है स्वयम को  जैसे जैसे विचार  या लक्ष्य के निर्माण की और हम अग्रसर होते है । वैसे वैसे ही हमारे अनुभव और प्राप्ति का दायरा बढ़ता जाता है। उन अनुभवों में  कुछ नकारात्मक विचार भी हम संचित कर लेते है ,वह एकात्म तत्व ही है जो कि उन नकारात्मक विचारो की छटाई करके अपने अनुभव से शुद्ध प्राप्ति को जानने में हमे समर्थ करता है जिससे कि हम निपुणता तत्व की तरफ अग्रसर होते है।

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अगली पोस्ट में हम महाविद्या मातंगी (निपुणता तत्व)की चर्चा करेंगे और जानेंगे कैसे निपुणता तत्व हमारे लक्ष्य निर्माण की नौंवी अवस्था है। और कैसे महाविद्या मातंगी  सृष्टी में निपुणता तत्व के रूप में विद्यमान है।

ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा सके। गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है। आपके प्रश्न जिज्ञासा या परेशानी के लिए आप हमे फ़ोन कर सकते है। आनंद हो ज्योतिष केंद्र कॉल -7009688414 व्हाट्स एप्प - 7696568265
                 

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