मित्रों आज जिस महाविद्या के बारे में हम उल्लेख करने जा रहे है वह दस महाविद्या की सबसे रहस्यमयी और प्रभावशाली और महत्वपूर्ण शक्ति तत्व है । उस महाविद्या का नाम है धूमावती महाविद्या और सृष्टि के उस तत्व को धूमावती प्रतिनिधित्व करती है ,वह तत्व है एकात्म तत्व। पिछली पोस्ट में हमने आपको भगवती बगलामुखी के बारे में बताया और उनके तत्व से आपको अवगत करवाया । इस पोस्ट में हम आपको मां धूमावती के एकात्म तत्व के बारे में विवरण देंगे । संघर्ष के बाद में एक समय ऐसा भी आता है जब आप अपनी शक्ति को पूर्ण रूप से एकत्रित करके सभी बाधाओं को दूर करते हैं । ऐसे समय में आपके साथ कुछ ऐसी स्थितियां भी उत्पन्न होती हैं जहां के आप अपने विचार निर्माण को लेकर बिल्कुल अकेले पड़ जाते हैं और आपके विचार या निर्माण के कारण लक्ष्य प्राप्ति के संघर्ष के कारण आप किसी ऐसी मानसिक स्थिति में भी पहुंच जाते हैं जहां के आपके उस लक्ष्य विचार या निर्माण की आलोचना और आप का संघर्ष आपको बिल्कुल अकेला कर देता है ।
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परंतु उस लक्ष्य पर अडिग रहकर आप जिस एकात्म स्थिति में होते हैं वह है धूमावती महाविद्या का तत्व । हमारे जीवन में बहुत सी ऐसी स्थिति आती है जहां कि हम बिल्कुल अकेले पड़ जाते हैं और हम किसी विचार को लेकर सभी प्रकार की आलोचनाओं और बाधाओं को जीत जाते हैं । परंतु इस लक्ष्य निर्माण संघर्ष और स्थिरता लाने के प्रयास में कहीं ना कहीं विचारों के मतभेद आपको अकेला भी कर देते हैं । परंतु जैसे त्याग बलिदान संघर्ष और स्थिरता जरूरी है वैसे ही जब आप अकेले हो अपने लक्ष्य को लेकर अग्रसर हो तो वह एकात्म भी जरूरी है । इस स्थिति में आप अपना अंतर मनन करते हैं । अपनी गलतियों को सुधारते हैं और उन से सीखते हैं । यह जो एकात्म तत्व है वह भी जीवन में आवश्यक है । धूमावती मां उस एकात्म तत्व का प्रतिनिधित्व करती है । मां धूमावती अकेली ऐसी महाविद्या है जो कि अकेली है, जिनका कोई भैरव नहीं ।
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एक आत्म तत्व से आप ऐसी स्थिति में पहुंचते हैं जहां पर नकारात्मक ऊर्जा आपको घेरती है आप ऐसी मानसिक स्थिति में पहुंच जाते हैं के आप आत्म मनन आत्म चिंतन के लिए विवश हो जाते हैं। उस आत्म चिंतन में अनेको तरह की भावनाएं आपको घेरती है। उस समय आप अपने किये हुए कुछ कामो के लिए स्वयं में हर्षित भी होते है और कुछ बातों को ले कर पश्चाताप और दुख भी आपको घेरता है । आर्म चिन्त से ही आप सक्षम हो पाते है कि आप अपनी अंदर की गलतियों को सुधार सके पनि बुराइयों के त्याग कर सके ,और आत्म मनन और आत्म चिंतन स्वयं के साथ में ही हो सकता है।
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पुरानी बातें जो कि इस संघर्ष के बीच में हुई हो या निपुणता तक पहुंचने के लिए बाधा हो का त्याग ,एकात्म तत्व आत्ममंथन के बिना कहां संभव है । आत्ममंथन से ही तो आप जान सकते हैं कि अब मैं किस स्थिति पर पहुंच गया हूं और इस उच्चतम स्थिति में कौन सी पुरानी बातें या फिर पुराने विचार त्याग कर देने योग्य हैं । मित्रों यह तत्व सबसे आवश्यक तत्व है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति किसी तत्व की प्राप्ति और इसी तत्व को जानने और इसी तत्व को समझने के लिए जाने कितने प्रयत्न करता है।
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प्रत्येक व्यक्ति उसी स्थिति पर पहुंचना चाहता है कि वह खुद को समझ सके , आत्ममंथन कर सके , अपना गुरु स्वयं हो सके , और अपना आलोचक अपना मित्र भी और अपना शुभचिंतक भी । यह तत्व एक पोस्ट में समाहित कर देना संभव नहीं है अतः अगली पोस्ट में एकात्म तत्व के बारे में हम और विवरण देंगे और चर्चा करेंगे । अगली पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि आपके जीवन में आप की संपन्नता तक कि जो बाधाएं हैं वह एकात्म तत्व के द्वारा कैसे संहार की जा सकती है और कैसे एक आत्मतत्व ही संहार तत्व का रूप है । और कैसे संहार तत्व निर्माण तत्व तक और संपन्नता निपुणता तक विद्यमान है।
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