मित्रो एक नए विषय पर आज चर्चा करेंगे और यह विषय है नव रस । वह नव रस जो आपके जीवन मे प्रतिपल अवस्थित है । आपके जीवन के घटने वाली प्रत्येक घटना से ले कर आपके द्वारा की जाने वाली प्रत्येक क्रिया का मूल आधार है। इन नव रसों के बारे में अधिक चर्चा नही की गई है। तँत्र का मूल आधार आपकी आंतरिक व्यवस्था और आंतरिक क्षमता है। और तँत्र सर्व विद्यमान है । तँत्र सभी क्रियाओ और जीवन की प्रत्येक अवस्था मे पूर्ण रूपेण अवस्थित है। तँत्र तत्व साधना के बिना अधूरा है और तत्व साधना रस ज्ञान के बिना अधूरी।
आपका भय, निर्भयता, हर्ष, उल्लास, दुख , उर्जाहीनता, ऊर्जावान होना, आपका क्रोध ,आपकी शांति, कोई भी कल्पना, कोई भी आकर्षण, कोई भी त्याग कोई भी निर्माण कोई भी संघर्ष , किसी भी स्थिति में स्थिरता, किसी भी अवस्था मे निपुणता और सम्पन्नता , यह सब तत्व ही तो है आपके जीवन के, और सिर्फ तत्व ही नही प्रत्येक क्रिया का कारण भी। तत्व ज्ञान तक संपूर्णता प्राप्त करने के लिए आपको रस ज्ञान होना अति आवश्यक है। क्योंकि क्रिया का कारण भी तो किसी मूल रस पर आधारित होता है।
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आपको गुस्सा आता है, आपको रोमांच आता है आप प्रेम में आते है, या घृणा करते है, स्वयम में शक्तिशाली या शक्ति हीन महसूस करते है या फिर बस शांत रह कर बिल्कुल गहरे में स्वयं में खो जाते है, यह ऊर्जा के ही तो रूप है। इनका मौलिक आधार वह नव रस ही है।जिस प्रकार का रस आपके अंदर क्रियाशील होता है वैसी ही ऊर्जा उत्पन्न होती है। और वैसी ही क्रिया आपसे होती है। साधना चाहे किसी भी प्रकार की हो परन्तु मूल आधार भी तो ये नव रस ही है। प्रत्येक मन्त्र की ऊर्जा का निर्माण आपके अंदर उस मन्त्र के प्रभाव से रस निर्माण द्वारा ही होता है। आज हम आपको रस की महिमा का बखान करेंगे।उन नव रसों के बारे में बताएंगे संक्षिप्त रूप में आगे कालांतर में आपको उन नव रसों की पूरी जानकारी और आपके मस्तिष्क हृदय और आपके अस्तित्व में वे क्या स्थान रखते है इसके बारे में पूर्ण विस्तार से जानकारी देंगे।
आयुर्वेद का आधार भी तो रस ही है क्योंकि आयुर्वेदिक पद्धति के अनुसार मनुष्य का निर्माण है रस रक्त मास मेद अस्थि मज्जा शुक्र । हम कुछ भी खाते है सर्व प्रथम रस का ही तो निर्माण होता है।
नृत्य और संगीत प्राचीनतम विद्याएं है। इन प्राचीन विद्या में आधार रस को ही तो रखा गया है किसी भी राग का मूल आधार उसके द्वारा निर्मित ऊर्जा ही तो है और वह ऊर्जा हमारे आंतरिक रस के कारण ही तो हमारे अंदर बदलाव लाती है ।
जीवन का आधार तँत्र है और तँत्र का आधार रस । हालांकि तँत्र की गहराई यही नही रुकती तँत्र में रस का आधार भी है परन्तु और गहराई में जाने से पहले रस ज्ञान होना अति आवश्यक है। तँत्र के अनुसार जो नव रस है उनका उल्लेख मैं आगे दे रहा हूँ और संक्षिप्त परिचय भी। आगे पूरी सीरीज आपको प्राप्त होगी।
श्रृंगार रस :-
यह रस आपकी भावनाओं का तल है। आपके आंतरिक प्रेम घृणा सौंदर्य, आकर्षण या आकर्षण हीनता से सम्बन्धित है। और उसी प्रकार की क्रियाओ का आधार भी। इस रस के क्रियाशील होने से व्यक्ति जीवन की ओर सकारात्मक हो कर हर्ष उल्लास लय पूर्ण जीवन जीता है और आंतरिक रूप से ऊर्जावान हो कर भी समर्पण भाव रखता हुआ प्रत्येक स्थिति में नव निर्माण और जीवन की ऊंचाइयों को प्राप्त करता है। स्वयं के अस्तित्व को जानने से लेकर उसके स्थायित्व के प्रयत्न या क्रियाये इस रस से सम्बंधित है।
हास्य रस :-
यह रस आपके अंदर के हर्ष उल्लास, और सकारात्मकता का अस्तित्व है। यह रस उत्पन्न करता है आपके अंदर खुशी और संतुष्टि की भावना का आधार है। और उसी प्रकार की क्रियाओ का कारक भी। यह रस विस्तार करता है आपके अंदर श्रृंगार रस का और प्रेम की अनन्त भावना का।
अद्भुत रस:-
विस्मय भावनात्मक जीवन का महत्वपूर्ण भाग है। यह रस सम्बन्धित है आपके अंदर आश्चर्य, विस्मय , और अज्ञात रहस्यमयी भावनाओ का और आपकी अनन्त और अज्ञात कार्यक्षमता का। यह रस आपके उस आंतरिक विस्मयकारी ऊर्जा का मूल है जो कि आपको ज्ञात नही थी परन्तु आपके अंदर अवस्थित थी। जैसे कि कुंडलिनी शक्ति।
वीर रस:-
यह रस हमारे अंदर आत्मविश्वास और वीरता अर्थात किसी भी प्रकार की विपत्ति में जो हिम्मत हम दिखाते है, से सम्बंधित है। यह आपके घमंड, वीरता और गर्व की स्थिति से सम्बंधित रस है और उसी प्रकार की क्रियाओ का आधार भी।
शांता रस:-
यह रस आपके आंतरिक शांति शून्यता और स्वयम में स्थित हो कर सब कुछ भूल कर बस पूर्ण रूप से सृष्टी से एकात्म प्राप्त करके शांत चित्तता से सम्बंधित है।
करुण रस:-
यह रस आपकी भावनात्मक अवस्था जिसमे आप के अंदर शोक और असहायता उत्पन्न होती है से सम्बंधित है। इसका सम्बन्ध आपके अंदर दया भावना और किसी को भी भावनात्मक दृष्टि से जुड़ कर उसके दुख और असुरक्षा की भावना को समझमे में भी यह रस ही क्रियान्वित होता है और उसी प्रकार की क्रियाओ का आधार भी है।
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रौद्र रस:-
यह रस आपके क्रोध और अव्ययवस्थित और अनियंत्रित ऊर्जा का आधार है। यह रस ही है जिसके कारण आपको क्रोध आता है और इसी प्रकार की क्रियाओ के पीछे क्रियान्वित हो कर यह रस आपसे वह तक करवा जाता है जो कि आप कभी कल्पना भी न कर पाए। कहा जाता है क्रोध सब से बड़ा शत्रु है और जैसे अग्नि का ताप सब भस्म कर देता है वैसे ही क्रोध नकारात्मक क्रिया का आधार बन हमारे जीवन के लिए अतयन्त विनाशकारी है। सृष्टि में संहार तत्व भी इसी रस से सम्बन्धित है।
भयानक रस :-
यह रस आपके भावनात्मक जगत में जो भय का अस्तित्व है उसका मूल आधार है। और भय , असुरक्षा, संदेह और चिंता की भावना में विस्तृत होता है।
वीभत्स रस :-
यह रस आपकी घृणा भावना का मूल आधार है। यह रस जब क्रियान्वित होता है व्यक्ति स्वयम में घृणात्मक भावनाओ से ग्रसित होता है। और स्वयं में लज्जित और स्वयं या किसी और के लिए घृणित भावना से ग्रसित होता है
तँत्र का निर्माण हमारे जीवन के निर्माण और जीवन के रहस्यो को जान कर पूर्णता प्राप्त करने के लिए हुआ। और इसका निर्माण किया स्वयं आदि अनन्त शिव ने। वे शिव जो कि निर्माता है योग संगीत नृत्य और समस्त विज्ञानों ज्ञानो पद्धतियों और सभी कलाओं के। वे शिव अगर योगिराज है , तो वे शिव नटराज भी ,पशुपतिनाथ भी और वैद्यराज भी , और वे शिव ही है महाकाल। तभी तो तँत्र समनव्य है ज्योतिष आयुर्वेद योग, संगीत, नृत्य और मुद्राओ का। ।काल से भी महान और तँत्र में निर्माता। काल की चाल को पहचानने वाला ही शिव का अस्तित्व जान पाता है।तभी तो तँत्र में कुछ भी त्याज्य नही समयानुसार प्रत्येक वस्तु प्रत्येक आहार और प्रत्येक आधार का प्रयोग तँत्र में मान्य है। सत तम रज सभी गुणों से निर्मित है तँत्र। और यह प्रथम चरण है काल की चाल को पहचानने का हम अपने अंदर घटित होने वाली प्रत्येक घटना के साक्षी हो कर उसका मूल कारण जान के आंतरिक व्यवस्था की लयबद्धता को जान कर जीवन की प्रत्येक स्थिति को पूर्णता से जी सके। और यह रस ज्ञान के बिना सम्भव नही है।
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