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क्यों मंत्र कीलित कर दिए गए?

क्यों मंत्र कीलित कर दिए गए?

मंत्रो से कार्य सिद्ध नही हो पाने के कारण क्या है? आज के समय मे मंत्रो के प्रयोग से सिद्धि प्राप्त क्यों नही हो पाती। कार्यसिद्धि में मंत्रो का प्रयोग सुलभ क्यों नही है। आज हम इस बारे में चर्चा करेंगे। प्राचीन गर्न्थो के अनुसार महादेव भगवान शिव ने तन्त्र का निर्माण किया। इसके षट्कर्म निर्मित किये गए और विधिया भी। इन विधियों में मंत्रो का महत्वपूर्ण स्थान रखा गया।  महाकाल शिव ने जब मंत्रो का निर्माण किया तो साथ ही उनके दुष्प्रभाव  और दुरुपयोग न हो इसके लिए उन्होंने इस मंत्र ज्ञान को निर्मित किया और उन्हें कील भी दिया। कीलन का अर्थ है ताला लगा देना एक तरह से उन्होंने इन मंत्रो को ताला लगा दिया ताकि इनका अपात्र व्यक्ति प्रयोग न कर सके।

   

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             कीलन के साथ साथ उन्होंने प्रत्येक मंत्र की उत्कीलन विधि भी बनाई । उत्कीलन विधि से अर्थ है के उन मंत्रो पर जो कीलन किया गया उन मंत्रो का कीलन विधिवत खोलना। प्रत्येक मंत्र के ऋषि देवता शक्ति बीज सब अलग अलग है ऐसे ही होती है उन मंत्रो की उत्कीलन विधि।  जो कि गुरू अपने शिष्य को बताता है या फिर शक्तिपात के द्वारा उन उत्कीलित मंत्रो की ऊर्जा को शिष्य को देता है। जैसा कि हम आगे भी बात कर चुके है कि मंत्र तन्त्र वह शक्ति है जिसका सदुपयोग जितना फायदेमंद है उसका दुरुपयोग उतना ही हानिकर भी है। जैसे मंत्रो का सदुपयोग प्रयोग करने वाले से लेकर, जिसके लिए यह प्रयोग किया जा रहा हो और जिसके ऊपर यह प्रयोग किया जा रहा हो, उन सब के लिए ही उत्तम है और लाभप्रद है। वैसे ही मंत्रो का दुरुपयोग जिस व्यक्ति के ऊपर किया जा रहा हो उसके लिए तो हानिकर है ही जिसके लिए यह प्रयोग किया जा रहा हो और जिसके द्वारा यह प्रयोग किया जा रहा हो, वह भी इसके दुष्प्रभावो से नही बच सकते।
                   कीलन का कारण भी ये ही रहा कि पहले शिष्य पात्रता सिद्ध करे ,योगी हो और ज्ञान प्राप्त करे तभी गुरु सेवा के बाद उसे मंत्र का प्रयोग मंत्रो का उत्कीलन और प्रभाव स्पष्ट रूप से समझाया जाता था।  ताकि मंत्रो का दूरूपयोग न हो। और इनका प्रयोग किसी के शुभ, कल्याण ,  और सहायता के लिए हो।

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             जैसे कमान से निकला हुआ तीर और बंदूक से निकली हुई गोली या किसी भी ऐसे प्रकार के विध्वंसक प्रयोग यह नहीं देखते यह प्रयोग किसी के उत्थान के लिए हुआ है या विध्वंस के लिए ।वैसे ही मंत्र भी उन्हीं तीर के समान है जो एक बार चलते हैं अपना कार्य करते हैं। और जैसे तीर इस बात से अनभिज्ञ हैं कि उसके प्रयोग के द्वारा किसी की रक्षा की जा रही है या किसी के साथ अन्याय , वैसे ही मंत्रों की ऊर्जा एक बार उत्पन्न हो तो कार्य सिद्ध होता ही है ।अतः मंत्रों की ऊर्जा का भी सदुपयोग और दुरुपयोग उस तीर की भांति ही है जो किसी की रक्षा भी कर सकते हैं और किसी का क्षय भी।

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         मित्रों महादेव ने मंत्रों का कीलन इसीलिए कर दिया ताकि पहले गुरु शिष्य को अच्छे से समझ ले ,पहले उसकी पात्रता जान लें उसकी सहनशक्ति जाने कि क्या वह शक्ति का सदुपयोग करेगा या दुरुपयोग उसकी पात्रता के अनुसार ही उसे मंत्रों का उत्कीलन बताया जाए क्योंकि मंत्र प्रभावहीन है । जब तक उन्हें मंत्रों का उत्कीलन नहीं बताया जाता यदि उसे मंत्र बता भी दिया जाए तो भी वह उन मंत्रों का प्रयोग नहीं कर पाएगा उसकी शक्ति इस मंत्र के जाप से उसके अंदर तो उत्पन्न होगी पर वह उस मंत्र ऊर्जा मंत्र शक्ति का प्रयोग नहीं कर पाएगा इसीलिए मंत्रों का कीलन कर दिया गया आगे पोस्ट में मैं आपको कुछ और बातों से कुछ और रहस्यों से अवगत करवाने का प्रयत्न करूंगा मंत्र कैसे काम करते हैं मंत्रों का उत्कीलन है क्या और किस प्रकार के व्यक्ति को किस प्रकार का मंत्र दिया जाता है
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 आनंद हो
ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा सके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है।
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