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तन्त्र और योग( इनका संबंध)

  

तन्त्र और योग (इनका संबंध)

तंत्र जैसे कि हमने पहले बताया कि आयुर्वेद, ज्योतिष, योग और इन सब का समनव्य है यदि आप तंत्र को सही मायने में जानना चाहते हैं तो आपको योग की यात्रा अति आवश्यक है । एक तांत्रिक तब तक तांत्रिक नहीं जब तक उसने योग और योग के रहस्य नहीं जाना। एक सफल तांत्रिक होने के लिए व्यक्ति को योग और योग की सही परिभाषा और इसके बारे में ज्ञान होना अति आवश्यक है। जो व्यक्ति तंत्र और सिर्फ तंत्र को ही प्रमुख मानता है वह या तो तन्त्र को जान ही नही पाता या फिर किसी  गलत व्यक्ति या किसी गलत क्रिया में फस कर पथ भृष्ट हो जाता है ।
     यहां यह कहना भी उचित होगा की योग के बिना तंत्र अधूरा है जब तक आप अपने आंतरिक तंत्र को नहीं समझते तब तक आप अपने बाह्य और सृष्टि तंत्र और महादेव द्वारा निर्मित इस महाविज्ञान को समझ नहीं सकते । इस विद्या को जानने के लिए और इसमें संपूर्णता प्राप्त करने के लिए आपको ज्योतिष ,आयुर्वेद ,योग और उसके साथ मंत्रों का, जड़ी बूटियों का और उनके आंतरिक और बाह्य प्रभाव को जानना ही पड़ेगा । इन सब को  जाने बिना यह संभव नहीं है इस विद्या को प्राप्त करने के लिए आपको अपने प्राण ,अपान, उदान सब प्रकार की वायु ,अपनी ध्वनि अपने नाड़ी तंत्र और मस्तिष्क तंत्र को जानना बेहद आवश्यक है । यदि आप इन सब को जाने बिना तंत्र कुछ जानने की कोशिश करेंगे तो आप कहीं नहीं पहुंचेंगे और कहीं ना कहीं आप किसी न किसी ऐसे व्यक्ति से मिलता मिल जाएंगे जो कि आपको पथ भ्रष्ट कर देगा जब तक आप को आंतरिक ज्ञान नहीं है तब तक आपको सृष्टि ज्ञान या तंत्र ज्ञान कैसे प्राप्त हो सकता है।

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      जैसा की हमने पहले विवरण दिया कि यह जो तंत्र है इसका निर्माण देवों के देव महादेव भगवान शिव जिनको के महाकाल, शिव, शंकर ,पशुपतिनाथ ,वैद्यनाथ जाने और कितने नामों से संबोधित किया जाता है । जहां वह कापालिक थे वही वह वैराग्य्वान भी थे । जहां वह भोले थे वही सबसे बड़े ज्ञानी भी थे एक तांत्रिक सत्य ही शिव स्वरूप हो जाता है। एक तांत्रिक सत्य ही आनंद में हो जाता है और वह आनंद बिना आंतरिक शुद्धि , आंतरिक व्यवस्था को समझने और बिना सत्य के स्वरूप को और अपने रूप को जाने शिववत कैसे हो सकता है शिववत होने के लिए तो शिव के बताए हुए मार्ग पर अग्रसर होना ही सबसे महत्वपूर्ण सबसे जरूरी और सबसे  मुख्य बात है। तंत्र का मार्ग योग के द्वारा ही हो कर जाता है बिना योगी हुए एक तांत्रिक कहलाया तो जा सकता है पर  हुआ नही जा सकता । योग के अंदर जो विधिया है जो क्रियाये है उनके द्वारा हमारे अंदर की शुद्धि  और संतुलन बनता है जो कि शारीरिक रूप से तो कारगर है ही उसके साथ साथ साधना पथ पर अग्रसर होने और संतुलित रूप से उस पथ पर रहने और सिद्धि प्राप्ति में बहुत ही मत्वपूर्ण है।

    अष्टांग योग साधना करने से हमारी आंतरिक ऊर्जा को जो बल मिलता है वह स्वयं में ही अन्यतम है। यम ,नियम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, ध्यान ,धारणा ,समाधि की यह जो यात्रा है, इसके बिना तंत्र,  तंत्र की विराट सत्ता और तन्त्र के गूढ़ रहस्यों को जानना वैसे ही होगा जैसे हम किसी स्थान पर गए बिना उसे जाने बिना सुनी सुनाई बातो की चर्चा करे। योग की कुंडलिनी शक्ति और इसके रहस्य जाने बिना हम तांत्रिक शक्तियां और उनके इष्ट देवी देवताओं या फिर उनके मंत्रो की ध्वनि को समझना, यह सब संभव नही है क्योंकि मंत्रो की स्पष्ट ध्वनि का उच्चारण कही न कही हमारी आंतरिक प्राण वायु का ही तो कार्य है । और प्राण वायु को संतुलित और नियंत्रित करना योग के बिना संभव नही। अगली कुछ पोस्ट में हम आपको मंत्रो में प्राण वायु का काम और योग के महत्व और उनको संतुलित करने की क्रियाओं से भी आपको अवगत करवाएंगे।

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    जैसे कि तंत्र की क्रियाओं में आसन में  बैठना जैसे कि कुछ क्रियायों में पद्मासन कुछ में कागासन कुछ में वीर आसन  आदि लगाना ज़रूरी होता है । कुछ और क्रियाये है जिसमे अति गुप्त आसनों का प्रयोग होता है जो कि ब्लॉग पर बताना संभव नही हो पायेगा यह आसन सिद्धि बिना योग के सम्भव हो ही नही सकती। योग आपको विपरीत परिस्थितियों में भी भयभीत न हो कर अपने कार्य को पूरा करने की विचार शक्ति देता है आपको ज्ञान ध्यान  और वीरता सभी की आवश्यकता होती है तंत्र पथ पर चलने के लिए । और यह सब बिना योग के सम्भव नही है । तन्त्र के षट्कर्म सभी तरह से संतुलन शक्ति स्थिरता हो तभी इनको प्राप्त किया जा सकता है।
      आगे चल कर हम आपको तंत्र और आयुर्वेद के बारे में विवरण देने का प्रयत्न करेंगे। और कुछ और नई और महत्वपूर्ण बातें जैसे कि तंत्र और ज्योतिष जैसे प्रत्येक तन्त्र कर्म मारण वशीकरण उच्चाटन उल्लीकण विद्वेषण स्तम्भन इन सबमे ग्रहों का संबंध और उनके महत्व के बारे में चर्चा करेंगे ।

ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा सके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है।
  आपके प्रश्न जिज्ञासा या परेशानी के लिए  आप हमे फ़ोन कर सकते है।

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टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर लेख है। बहुत अद्भुत जानकारी आपने लिखी। धन्यवाद आपको।

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  2. तंत्र सीखना है । समझना है। और इसमें निशनाथ होना है। आप और लेख लिखते रहिये। धन्यवाद।

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