मारण तन्त्र और इसका सदुपयोग
मारण तन्त्र के वारे में हमने आपको पहले पिछली पोस्ट में अवगत करवाया। (देखे मारण तन्त्र सत्य या मिथ्या) अब आपको मारण तंत्र के प्रयोगों से इनके इष्ट इसका महत्व हमारे जीवन मे क्या है और इसका निर्माण क्यों हुआ यह बताने की आपको कोशिश करेंगे। मारण तंत्र जैसे कि आपको पहले बताया मारण तन्त्र का अर्थ है किसी व्यक्ति का मारण परन्तु सत्य सिर्फ ये नही है सत्य ये भी है कि इस तंत्र का प्रयोग आपके अंदर के विचारों जो कि आपके जीवन मे द्वेष ईर्ष्या या क्रोध आदि ला सकते है। या आपकी और आपके व्यक्तित्व को निखारने में बाधक हो सकते है उनका मारण करना । किसी आने वाले कष्ट का मारण करना या किसी आई हुई विपत्ति का मारण करना या फिर आपके ऊपर किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या है उससे बचाव करना।
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मारण तंत्र में तीनों प्रकार की विधियां जैसे कि ध्यान तंत्र मंत्र या कुछ सिद्ध की हुई सामग्री का प्रयोग यह सभी प्रकार के प्रयोग मारण तंत्र के अंदर होते हैं । मारण तंत्र के अलग इष्ट अलग साधनाएं और अलग सामग्री प्रयोग में लाई जाती है इस तंत्र में भगवान श्री महाकाल की पूजा उनका ध्यान और उनके मंत्रों का प्रयोग होता है। इस तंत्र के सदुपयोग में महामृत्युंजय के द्वारा अच्छे प्रयोग होते हैं महामृत्युंजय मंत्र आंतरिक विकारों को नष्ट करने में उनका मारण करने में और मारण प्रयोग से बचने में भी बहुत सहायक है और अत्यंत प्रभावशाली है। दूसरा प्रयोग है दुर्गा सप्तशती का दुर्गा सप्तशती के द्वारा तांत्रिक मांत्रिक और गोपनीय साधनाएं की जाती हैं और कार्य सिद्धि सुलभ है जैसे की हम जानते हैं मां दुर्गा के नौ रूप है जैसे कि कवच में लिखा है प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्मांडेति चतुर्थकम् पंचम स्कंदमातेति षष्ठम कात्यायनी सप्तम कालरात्रि महागौरी तिचाष्टकमनवम सिद्धिदात्री च। अर्थात् मां दुर्गा का प्रथम रुप शैलपुत्री है दूसरा ब्रह्मचारिणी तीसरा चंद्रघंटा चौथा कुष्मांडा पांचवी स्कंदमाता छटी मां कात्यायनी सातवां कालरात्रि रूप आठवां महागौरी मां दुर्गा का नवा रूप सिद्धिदात्री है ।
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यह सभी मां दुर्गा के रूप कार्य सिद्धि से लेकर कृपा प्राप्ति तक अत्यंत प्रभावशाली और प्रत्यक्ष प्रभावी है। इस तंत्र में महाकाली तंत्र अर्थात् मां दुर्गा के महाकाली रूप से संबंधित पूजा अर्चना साधना और तंत्र प्रयोग है जिसमें की मंत्रों के प्रयोग से लेकर ध्यान संबंधित प्रयोग है जैसा की हमने पहले बताया कि साधनाएं और तंत्र प्रयोग गुरु शिष्य परंपरा के द्वारा ही दिए जा सकते हैं। यह प्रयोग आप किसी अच्छे और ज्ञानी तांत्रिक मांत्रिक कर्मकांडी अथवा किसी ज्ञाता के द्वारा भी करवा सकते हैं।महाकाली के 10 रूप 10 महाविद्या के नाम से जाने जाते हैं और इन 10 रूपों के द्वारा यह प्रयोग किया जाता है इनमें मुख्य बगलामुखी विद्या भैरवी विद्या और धूमावती विद्या है यह तंत्र बहुत ही महत्वपूर्ण तंत्र है आज का समय प्रतिस्पर्धा का समय है और प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन चाहता है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह जिस भी स्थान पर है जिस भी पद पर है और जिस भी स्थिति में है उससे आगे बढ़े और आगे ना भी बढ़ सके कम से कम स्थिर हो । तंत्र का निर्माण इसलिए किया गया ताकि व्यक्ति संपूर्णता प्राप्त कर सके यह अलग बात है कि आज तंत्र का नाम सिर्फ और सिर्फ बदनाम है । परंतु तंत्र वास्तव में ऐसा नहीं है जैसा चित्रण आज इसका हो चुका है अपितु तंत्र एक रास्ता है जो शिव के द्वारा निर्मित किया गया शिव वत होने को संपूर्णता प्राप्त करने को और प्रगति के पथ पर अग्रसर होने को । आज तंत्र के नाम पर जितने आडंबर जितने प्रपंच हो रहे हैं वह वास्तव में ही तंत्र की न्यूनतम स्तर है तंत्र और तांत्रिक दोनों ही इतनी उच्चतम स्थिति है कि शायद कोई विरला ही इसे प्राप्त कर पाता है ।
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