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श्रीं के प्रयोग

श्रीं के प्रयोग

   मित्रो  जैसे कि पिछली पोस्ट में हमने आपको श्रीं मंत्र से अवगत करवाया । इस पोस्ट में हम आपको श्रीं मंत्र के प्रयोग आपको समझाएंगे । श्रीं मन्त्र की साधना भी ह्रीं जैसे ही पहले ध्यान पूर्वक किया जाना चाहिए तथा शुद्ध भाव से इसका ह्रीं की तरह ही गुंजन  ध्यान किया जाना चाहिए।  ह्रीं में उग्र प्रयोग भी है परन्तु श्रीं में अधिकतर सौम्य प्रयोग ही होते है।
इसका प्रयोग अधिकतर   सौंदर्य प्राप्ति धन प्राप्ति और  महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
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    जिस व्यक्ति पर महालक्ष्मी  की कृपा हो उसके जीवन मे कोई अभाव कैसे रह सकता है। अब मैं आपको इसका एक प्रयोग बताऊंगा  जो कि आपकी समृद्धि  सम्पूर्णता  और सम्पन्नता के लिए मा महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने में आपको सक्षम करेगा।

 साधना सामग्री
पानी वाला नारियल (कुम्भ स्थापन के लिए)
 मिश्री।     यथा शक्ति
 खीर का प्रसाद
 गाय का घी।   अखंड ज्योति के लिए
गुलाब के फूल
सफेद वस्त्र
सफेद  आसन
श्री यन्त्र स्फटिक(अभिमंत्रित)
स्फटिक माला (प्राण प्रतिष्ठित)
सफेद मिष्ठान
महालक्ष्मी का चित्र
 साधना दिशा पश्चिम
साधना समय रात्रि
 साधना मंत्र संख्या (यथा संकल्प)
      श्रीं की साधना करने के लिए यह उपर्लिखित सामग्री  प्राप्त कर के शुक्र का कोई नक्षत्र देख कर योग आदि देख कर शुक्ल पक्ष में यह साधना आरम्भ करके पूर्णिमा तक कि जानी चाहिए।  मंत्र संख्या कम से कम 51000 होनी चाहिए। यह प्रयोग सौम्य प्रयोग है  और सत्व कार्य सिद्धि में उपयोगी है।
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     साधक सर्व प्रथम जप संख्या निर्णय करके  योग आदि नक्षत्र आदि देख कर  साधना प्रारम्भ करे। इस बीज को आत्मसार करके  महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम श्री यंत्र को और महालक्ष्मी के चित्र को स्थापित करे। और भगवान गणपति का आह्वान करते हुए नारियल को स्थापित करे । अपने गुरु का और गणपति जी का ध्यान करते हुए भगवान विष्णु से आज्ञा और सहायता मांगे।  संकल्प ले कि मैं अमुक गोत्र से उत्पन्न अमुक नाम का व्यक्ति अमुक स्थान पर अमुक कार्य सिद्धि के लिए यह अनुष्ठान करता हूँ(यहां अमुक स्थान में नाम गोत्र नाम और कार्यसिद्धि की इच्छा बोलनी है)। उसके उपरांत  हनुमान चालीसा का पाठ करे गुरु मन्त्र का जाप करके  श्रीं मंत्र का जाप प्रारम्भ करे। निश्चित संख्या प्रतिदिन करनी चाहिए काम या ज़्यादा नही। इस साधना में व्यक्ति को गुस्सा , भोग या विषय विचार न करके केवल संकल्प को चेतना में बस कर  साधना पथ पर अग्रसर रहना चाहिए। महालक्ष्मी के भोग स्वरूप प्रतिदिन खीर का भोग अर्पित करना चाहिए।
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 साधना पूर्ण होने तक मंत्र का और संकल्प का मानसिक चिंतन करते रहना चाहिए। फालतू में बात करने से बचे। साधना पूर्ण होने  पर श्रीयंत्र को  स्थापित करे और  माला को मंदिर में रखे । इस सिद्ध माला की कृपा से सर्व कार्य सिद्धि  प्राप्त हो सकती है । यह माला अत्यंत शक्तिशाली और महालक्ष्मी स्वरूप ही हो जाती है। साधना अंत होने पे जप संख्या  का दशांश हवन करने चाहिए जिसमें खीर की आहुति सामग्री के साथ दी जाती है।

           मित्रो इस मन्त्र साधना को यदि आप सम्पन्न करते है तो निश्चित ही महालक्ष्मी की कृपा आप पर बरसेगी।  और नई  सम्भावनाये ,तरक्की के नए रास्ते खुलेंगे। और आप निश्चित ही  श्रेष्ठ  स्थान प्राप्त करेंगे।
ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा सके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है। आपके प्रश्न जिज्ञासा या परेशानी के लिए आप हमे फ़ोन कर सकते है।

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