महाकाली अष्टकम
पिछली पोस्ट मैं हमने आपको महाकाली महाविद्या और क्रीं मंत्र प्रयोग के बारे में बताया इस पोस्ट में हम वह श्रृंखला आगे बढ़ाते है। महाविद्या महाकाली के बारे में पोस्ट लिखने और आपको दस महाविद्या से अवगत करवाने की श्रृंखला में हम आज आपसे कालिका अष्टक स्तोत्र के बारे में चर्चा करेंगे कालिका अष्टक में भगवती महाकाली के रहस्यपूर्ण स्वरूप का व्याख्यान किया गया है और उनकी प्रशंसा, वंदना और व्याख्या की गई है ।
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यह स्तोत्र कोई भी पढ़ सकता है और मां की कृपा प्राप्त कर सकता है यदि आप किसी प्रकार के कष्ट में है कोई वायवीय बाधा आपको परेशान कर रही है। शनि राहु आदि के प्रकोप से जूझ रहे हैं या आपके साथ कहीं अन्याय हो रहा है तो यह महा कालिका अष्टक आपकी समस्याओ के समाधान में उपयोगी और कार्य सिद्धि देने वाला हो सकता है ।इसमें साधक को महाकाली मंदिर में जा कर इस स्तोत्र का जप ध्यान इत्यादि करना होता है शुद्धि, ब्रह्मचर्य और नियम पालन अत्यंत आवश्यक है। सब प्रकार से कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली चाहे वह शारीरिक मानसिक या भौतिक कष्ट हो या वायवीय बाधाओं के कष्ट महाकाली की पूजा जप ध्यान से सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है अतः यह पस्तोत्र आपके लिए फलदायी हो ऐसी मैं कामना करता हूं ।
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महाकाली अष्टकम
महाघोररावा सुदंष्ट्राकराला
विवस्त्रा श्मशानालया
मुक्तकेशीमहाकालकामाकुला
अर्थात भगवती महाकाली के गले मे रक्त टपका रहे मुंडो की माला है। टपकते रक्त की मुंड समूहों की माला में पहनती है इनकी दाढ़े अति सुंदर है और इनका रूप बहुत भयानक है । यह महाकाली श्मशान में निवास करने वाली बिना वस्त्रो के , खुले केश बिखरे हुए से और महाकाल से कामलीला में रत है।
कालिकेयम्भुजेवामयुग्मे शिरोऽसिं
दधानावरं दक्षयुग्मेऽभयं वै तथैव ।
सुमध्याऽपि तुङ्गस्तनाभारनम्राल
सद्रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या ॥२॥
यह अपने दोनों दाहिने हाथों में खड्ग और नरमुंड धारण किये हुए है और दोनों बाहिने हाथों में वर और अभय मुद्रा धारण करती है।। इनका रूप अतुलनीय है यह उन्नत कटिप्रदेश वाली और स्तनों के भार से आगे को झुकी हुई सी है। एक ओष्ठ द्वय का प्रान्त रक्त से सुशोभित है और मन्द मन्द सी मुस्कान से युक्त है।
शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशील
सत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची ।
शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभिश्
_चतुर्दिक्षुशब्दायमानाऽभिरेजे ॥३॥
इनके दोनो कानो में शव रूपी आभूषण है और केश सुंदर है। शवो से बनी सुशोभित करधनी धारण करती है ।यह शव पर आसीन है और चारों दिशाओं में शब्द करने वाली सियारिनो से घिरी हुई सुशोभित है।
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सतुतिः
विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीन्समाराध्य
कालीं प्रधाना बभूबुः ।
अनादिं सुरादिं मखादिं
भवादिंस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥१॥
ब्रह्मा आदि तीनों देवता आपके आश्रय से तथा आप भगवती काली की ही आराधना से प्रधान हुए है।आपका स्वरूप आदि सहित है और देवताओ में अग्रगण्य है प्रधान यज्ञ स्वरूप है और विश्व का मूलभूत है । आपके इस स्वरूप को देवता भी नही जानते।
जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं
सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम् ।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥२॥
आपका यह स्वरूप सम्पूर्ण विश्व को मुग्ध करने वाला, वाग्वादिनी जैसे वाणी वीणा द्वारा स्तुति किये जाने वाला वाणी का स्तम्भन करने वाला और उच्चाटन शक्ति युक्त है। आपकी शक्ति को पूर्ण रूप से देवता भी नही जानते।
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली
मनोजास्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात् ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥३॥
आप स्वर्ग देने वाली कल्पलता के समान है जो कि भक्तो के मन मके उतपन्न होने वाली मनोकामनाओं को यथार्थ पूर्ण करती है और वे सदा के लिए कृतार्थ हो जाते है। आपके स्वरूप को देवता भी नही जानते।
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ताल
सत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते ।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्कास्वरूपं
त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥४॥
आप सुरापान में मत्त रहती है और अपने भक्तों को सदा वात्सल्य भाव रखने वाली है। भक्तों के पवित्र हृदय में ही आपका आविर्भाव होता है। जप ध्यान पूजा के अमृत से आप भक्तो के अज्ञान रूपी पंक को धो देने वाली है । आपके इस स्वरूप को देवता भी नही जानते।
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चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दंशरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तंस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥५॥
आपका स्वरूप चिदानंद्घन, मन्द मन्द मुस्काने, शरत्कालीन करोड़ो चन्द्रमा के प्रभासमूह का प्रतिबिंब ऋषियों तथा कवियों के हृदय को प्रकाशित करने वाला है । आपके इस स्वरूप को देवता भी नही जानते।महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्राकदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया ।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापिस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥६॥
आपका स्वरूप्प प्रलयकालीन घटाओ के समान कृष्ण वर्णा है । आप कभी रक्तवर्ण वाली तो कभी उज्ज्वल वर्ण वाली भी है।। आप विचित्र आकृति वाली और योगमाया स्वरूपिणी है। आप न बाला है ना वृद्धा और न कामातुर युवती ही है। आपके इस स्वरूप को देवता भी नही जानते।
क्षमस्वापराधं महागुप्तभावंमया लोकमध्ये प्रकाशिकृतं यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥७॥
आपके ध्यान से ज्ञान प्राप्त करके चंचलता वश जो मैंने आपके गुप्त स्वरूप को संसार के सामने लाया इस अपराध लिए मुझे क्षमा करें। आपके इस स्वरूप को देवता भी नही जानते।
यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्यस्_तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ।
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्तिःस्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥८॥॥
यदि कोई इसका ध्यानयुक्त हो कर पाठ करता है तो वह तीनो लोको में महान हो जाता है। उसके घर में आठो सिद्धियां वास करती है।मरने के बाद उसे मुक्ति भी मिलती है। आपके इस स्वरूप को देवता भी नही जानते।
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम् ॥.
ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा सके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है। आपके प्रश्न जिज्ञासा या परेशानी के लिए आप हमे फ़ोन कर सकते है।
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