ह्रीं बीज मंत्र की श्रृंखला में में आपको आज ह्रीं बीज की कुछ साधनाओ से अवगत करवाऊंगा।
ह्रीं बीज क्या है किस से सम्बंधित है यह हम आपको पिछली पोस्ट
http://mysteriesofancienttantra.blogspot.in/2018/01/blog-post_57.html?m=1 में अवगत करवा चुके हूँ और इसके लाभ भी आपको समझा चुका हूँ। अब हम इस पोस्ट में चर्चा करेंगे कि ह्रीं बीज मंत्र की साधना कैसे की जा सकती है और किस प्रकार से यह साधना तन्त्र क्रियाओ और मंत्रो में प्रयोग होती है।
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जैसा कि मैंने पहले भी आपको बताया की ह्रीं बीज मंत्र वशीकरण कार्यो में ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए प्रयोग किये जाने वाले मंत्रो में मुखयतः प्रयोग होता है। मोहिनी ,यक्षिणी , और दुर्गा माँ के मंत्रो में कार्यसिद्धि हेतु इस बीज मंत्र का प्रयोग होता है। परंतु ज़्यादातर साधक सीधा महा मंत्रो का प्रयोग जाप करने लग जाते है। क्योंकि बीज मंत्र की साधना पहले उन्होंने नही की होती तो वह उस दैवीय ऊर्जा को संभाल नही पाते । जो शक्ति उन्हें प्राप्त होती है वे व्यर्थ ही गवा देते है।
साधक को पहले चाहिए कि वह गुरु से बीज मन्त्र ले कर ग्रहण कर के पहले बीज मंत्र साधना में रत हो। इसकी लय को समझे इस पर ध्यान करे।
सर्व प्रथम ध्यान विधि इसकी यह है कि इसका शुद्धावस्था में बैठ कर ध्यान मुद्रा लगा के एकाग्र चित्त से इसका ॐ की तरह ही जाप , उच्चारण , गुंजन करे।
http://mysteriesofancienttantra.blogspot.in/2018/01/blog-post_82.html?m=1
इस बीज मंत्र को आत्मसात करे और इसका प्रभाव अपने आंतरिक शक्ति का विकास को महसूस करे। जैसे जैसे साधक इस ध्यान में अग्रसर होगा जाता है वैसे वैसे ही उसके मुख मंडल और प्रभामंडल में विस्तार होगा जो कि आगे जा कर किसी विद्या की साधना या महाविद्या की साधना में उसके लिए ऊर्जा और कृपा प्राप्ति विकसित करेगी।
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दूसरा ध्यान इस मंत्र का है इसे ॐ के साथ जप करने का है आप ॐ ह्रीं ॐ का जाप कर सकते है। ॐ की महत्ता आपको मैन पिछली पोस्ट में बताई। ॐ ह्रीं ॐ से साधक स्वयं में शिव और शक्ति का मिलन दोनो उर्जाओं का अवतरण अपनी अंतर्मन से बाह्य गतिविधियों तक महसूस के सकता है। यदि आप ध्यान कर रहे है तो आपको इसका उच्चारण ओओओऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊम्म्म्म्ममम्ममम्ममम्ममम्ममम्म
हहरर्रीईईईईईईईईईइम्म्ममम्ममम्ममम्म ओऊऊऊऊऊमममममममम
इस प्रकार से करना चाहिए । साधक जब इस प्रकार से ध्यान करता है तो साधक के अंदर दैवीय ऊर्जा उतपन्न होती है जो कि उसकी चेतना को जागृत कर साधना पथ पर और जीवन के पथ पर श्रेष्ठता हासिल करने के लिए सक्षम बनाती है।
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कोई भी जप तीन तरह से किया जाता हैमनसिक जप,उपांशु जप,और वाचिक जप।ह्रीं बीजमन्त्र का मानसिक जप अपने आंतरिक शुद्धि विकास चेतना जागरण और रोग हरण में लिए किया जाता है। उपांशु जप कार्यसिद्धि और प्राप्ति में लिए किया जाता है और वाचिक जप अपने आस पास की ऊर्जा प्रभामंडल के विस्तार और नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए किया जाता है।साधक को चाहिए कि तीनों प्रकार से बीज मंत्र की साधना करे और फिर महामंत्र या कार्यसिद्धि मंत्र में अग्रसर हो।
ह्रीं बीज के कार्य सिद्धि प्रयोगों में सामग्री माला और विधि विधान होते है जिसका कुछ भाग जो कि बताया जा सकता है अगली पोस्ट में आपको उस बारे में अवगत करवाऊंगा।
ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा Uसके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है।
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