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महाविद्या तारा(कल्पना तत्व)




 मित्रों जैसे पिछली पोस्ट में हमने आपको मां तारा के बारे में बताया उनके तीन रूप उग्र तारा नील सरस्वती और एक जटा इनसे अवगत करवाया । इनका परिचय आपको दिया भगवती भगवती तारा के इन 3 रूपों के बारे में हम आपको बता चुके हैं । अब हम चर्चा करेंगे भगवती तारा और उनके तत्व के बारे में भगवती तारा का मुख्य तत्व क्या है ? मां तारा का मुख्य तत्व है कल्पना। मां तारा कल्पना शक्ति हमारे भीतर जो प्रथम विचार आता है और इस विचार की क्रियात्मक रूप से ले कर पूर्णता तक मां तारा का ही आधिपत्य है। हमारे जीवन और जीवन की सभी क्षेत्रों में विकास कल्पना से ही तो होता है हम जब भी कोई भी कार्य करते हैं उससे पहले की कल्पना जरूर करते हैं । जैसा कि पिछली पोस्ट में भी मैंने बताया था ब्रह्मांड में जितना भी ज्ञान है इधर-उधर फैला हुआ चाहे विज्ञान का है ज्योतिष का है या किसी और चीज का है तारा तत्व ही है और उनकी आराधना से हमें ज्ञान और कल्पना दोनों मिलते हैं ।         

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                 तारा साधना करने के बाद एक सामान्य व्यक्ति ही कवि बन जाता है। इस सृष्टि में जो भी आविष्कार, निर्माण, सृजन हुआ है  उसका मूल तत्व कल्पना ही तो है। आध्यात्मिक विकास से ले कर भौतिक विकास तक कल्पना शक्ति ही प्रथम स्रोत है जिससे कि हम कुछ निर्मित कर पाते है। दूसरे पहलू से देखे नकारात्मकता भी तो कल्पना के बिना कहा सम्भव है। विध्वंस करने के लिए भी तो एक विचार ही होता है  कल्पना में परिवर्तित हो कर कार्यान्वित होता है और पूर्ण भी। तो यह कहना  और समझना भी तो काफी हद तक सही ही होगा कि कल्पना चाहे विध्वंसक हो या सृजनात्मक प्रत्येक का मूल तो एक विचार ही होगा। विचार से ही कल्पना का निर्माण होता है सकारात्मक हो गया नकारात्मक है तो देवी तारा ही। जीवन कल्पना के बिना अधूरा है कल्पना हई तो है जो मानव जाती प्राचीन काल से आज तक के आधुनिक काल  तक जो प्रगति प्रसार और आविष्कार हुए है वह कल्पना के बिना कहा सम्भव थे। विज्ञान ने आविष्कार किया तो वह भी तो विचार से ही हुआ । वैज्ञानिक की कल्पना हुई तो उसने कल्पित वस्तु के निर्माण में एकाग्रचित्त हो कर उसे कार्यान्वित कर  उसे आविष्कृत किया। तो यहां भी मूल तत्व तो भगवती तारा का तत्व कल्पना ही है।

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               मां तारा श्मशान में निवास करने वाली है अर्थात श्मशान से सूचक है जहां कुछ भी न हो दूसरे शब्दों में कहे तो अंत । परन्तु श्मशान के आगे भी शास्त्रो के अनुसार नया जीवन है। ऐसे ही प्रत्येक अंत नई शुरुआत की संभावना रखता है वह नव निर्माण भी कल्पना के बिना कहा सम्भव है।  अब अंत हम किसी भी परिस्थिति का मान सकते है वह कोई रिश्ता भी हो सकता है, वह स्वास्थ्य भी हो सकता है , वह आपका कार्यक्षेत्र हो सकता है कोई न्यायिक परिस्थिति हो सकती है । कोई भी ऐसी स्थिति जिसमें की कोई संभावना न दिखे और अंत ही दिखे वह शव का ही तो सूचक है । ऐसी किसी भी स्थिति में मां तारा की साधना नई कल्पना नई सम्भावना नई आशा की किरण प्राप्त करने के लिए की जानी चाहिए।
 मां लीजिये आप किसी रिश्ते में है और किसी कारणवश वह रिश्ता टूट चुका  है अथवा टूटने के कगार पर है आप चाह  कर भी इस  रिश्ते को जोड़ने में समर्थ नही है  और गलतफहमियों का अंधकार पूर्ण रूप से उस रिश्ते में छा चुका है। तो देवी तारा की साधना  आपको उस अंधकार मे प्रकाश की किरण देने वाली साधना है। आपके मस्तिष्क में नए विचार उत्पन्न करके  पथदर्शन के द्वारा उस स्थिति या उस रिश्ते को पुनर्जीवित करने की शक्ति है । इस महा विद्या की साधना में। ऐसे ही आपके कार्यक्षेत्र में भी गए बात लागू होती है । आपके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह  साधना आपको पथदर्शन करने वाली और सम्भावना, सकारात्मकता प्रदान कर शक्ति से परिपूर्ण करने वाली महा विद्या है माँ तारा।
 अगली पोस्ट में में मां उग्र तारा के स्वरूप और आज के आधुनिक काल  में उनकी साधना का महत्व आपको समझाऊंगा। मां तारा का आधिपत्य की प्रशंसा  यदि मैं करता ही जाऊँ तो भी कभी समाप्त नहीं होगी। मैं आप तक उनकी प्रशंसा में ब्लॉग लिख कर पहुंच पा रहा हूँ इस बात के लिए देवी को ही नमन है क्योंकि ये ब्लॉग भी में कल्पना के बिना कैसे लिखता। भाषा भी तो कल्पना के बाद ही लिखी  और बोली जाती है। उस महाविद्या महाशक्ति तारा माँ को नमन है ।
ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा सके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है। आपके प्रश्न जिज्ञासा या परेशानी के लिए आप हमे फ़ोन कर सकते है

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महाविद्या मा तारा


महाविद्या तारा स्वरूप और रूप


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