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महाविद्या माँ तारा



     पिछली कुछ पोस्ट में  हमने आपको दस महा विद्या  ,  महाविद्या महाकाली, महाकाली साधना और क्रीं बीज मंत्र साधना के बारे में बताया था साथ ही हमने आपको सभी दुखो का नाश करने वाली भगवती महाकाली के स्तोत्र महाकाली अष्टक से अवगत करवाया। दस महाविद्या श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम अब आपको महाविद्या तारा के बारे में अवगत करवाएंगे। इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि कौन है माँ तारा और क्या है उनका रहस्य ? क्या है स्वरूप उनका और किस प्रकार से यह महाविद्या की कृपा यदि हम प्राप्त हो जाये तो हमारे जीवन में बदलाव  लाने में सक्षम है।
     माँ  तारा तांत्रिको की प्रमुख देवी है। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा नाम से जाना जाता है।भगवती तारा के तीन स्वरूप है तारा, नीलसरस्वती और एकजटा।मा तारा की साधना से  शत्रुओ का नाश होता है और इनकी साधना अपार ऐशवर्य  और सौंदर्य प्राप्ति के लिए की जाती है।  महाविद्या तारा को नील तारा भी कहा जाता है । मां तारा शिव की माँ भी कहलाती है । यह सरस्वती के समान ज्ञान की देवी है । अगर यह कहा जाए कि सरस्वती मां की शक्तियों को हज़ार गुना करके एक माँ नील तारा की शक्ति बनती है।  अपने भक्त को ज्ञान सम्मान और ध्यान का अतुलनीय खजाना देने वाली इस महाविद्या को तारा तारिणी भी कहा जाता है।
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                   इनके साधक को स्वयं से ही सभी उच्चतम रहस्य प्राप्त होने लग पड़ते है। काव्य साहित्य और दर्शन शास्त्र की रचना स्वतः: होने लग जाती है। माँ   तारा का साधक सभी ज्ञानियों में श्रेष्ठ ,कलाओं का ज्ञाता , और श्रेष्ठ विद्यायो के रहस्यों को जानने वाला होता है।

 समस्त अंधकार मां काली है और उसके  अंदर प्रकाश की किरण मां तारा वेदों के अनुसार सोम नाम का तत्व जिसे योगीजन अम्रत कहते है वही  माँ तारा है । जीव को पशुता से मुक्त करने के बाद अमृत प्रदान करने   वाली है माँ तारा। मां तारा की साधना दस महाविद्या के साधक को करने के लिए इसलिए भी बोल जाता है कि वह अपने अन्तर के ब्रह्मांडीय रहस्य को जान सके उससे परिचय कर सके और आत्मसात कर सके।
                   भगवती तारा की साधना मातृवत होती है जैसे कि हमे जन्म दिया है हमारी माता ने वैसे ही सम्पूर्ण सृष्टि की जन्म दात्री है माँ तारा। जैसे कि वेदों के अनुसार सृष्टी के पहले बस अंधकार था गूढ़ अंधकार और तभी  उत्पन्न हुई ऊर्जा तभी उत्पन्न हुआ प्रकाश बस वो प्रकाश है माँ तारा। ध्यान विधियों में भी मां तारा उतनी ही महत्वपूर्ण है जैसे ही एक साधक ध्यानस्थ होने के लिए आंखे बंद करता है उसके सामने सिर्फ अंधेरा होता है। परन्तु  जैसे जैसे वह ध्यान में अग्रसर रहता है ।पहला अनुभव जो उसे प्राप्त होता है वह होता है प्रकाश हल्का सा प्रकाश जो कि साधक को अंदर प्रतीत होता है , वह तत्व माँ तारा का ही है।
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   हयग्रीव नामक राक्षस के वध हेतु देवी ने नीला शारीरिक रूप धारण किया इससे मा तारा नील तारा  के नाम से जानी जाती है। देवी के  उस उग्र रूप के कारण मां को उग्र तारा भी कहा जाता है। मां तारा अपने साधक को जीवन मृत्यु चक्र  से मुक्ति दिलाने और अपने साधक के घोर से घोर कष्ट का निवारण करने वाली देवी है। समुद्र मंथन के समय शिव के हलाहल विष पान करने पर मातृ रूप में अपना स्तन पान करवाने वाली है माँ तारा और शिव के कष्ट हरण करने वाली है माँ तारा। अगली पोस्ट में हम आपको मां के अन्य आठ रूप उनके स्वरूप और अन्य रहस्य उजागर करेंगे।
    वैसे तो माँ तारा के बारे में जितना कहा जाए कम है और  उनकी व्याख्या करने के लिए  में तुच्छ हूँ परन्तु साधक की तरह या भगवती के अन्य पुत्रो की तरह में भी अपनी इस दिव्य मा की प्रशंसा और वर्णन कर सका तो सौभाग्यशाली हूँगा ।

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महाविद्या तारा पर अन्य पोस्ट

महाविद्या तारा स्वरूप और रूप

माँ तारा (कल्पना तत्व)


ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा सके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है। आपके प्रश्न जिज्ञासा या परेशानी के लिए आप हमे फ़ोन कर सकते है
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