मित्रो जैसे कि मैंने आपको पिछली पोस्ट में ह्रीं बीज कके मंत्र साधना के बारे बताया इस पोस्ट में में आपको ह्रीं साधना का तांत्रिक प्रयोग बताऊंगा। ह्रीं साधना का प्रयोग ऐश्वर्य प्राप्ति, नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा पाने, रोग हरण करने , और शत्रु से विजयी होने में किया जाता है । अब मैं आपको सबसे पहले वशीकरण प्रयोग बताऊंगा। इसमे साधना के लिए आपको ज़रूरत होगी अखंड ज्योति की ,नारियल की, पूजन सामग्री , फल फूल ,धूप इत्यादि की। इस प्रयोग में आपको लाल वस्त्र का प्रयोग करना है और लाल ही फूल लाल ही सिंदूर । आपका आसन लाल ही होना चाहिए।
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माला मूंगे की माला का प्रयोग इसमे किया जाता है । लाल रंग इस साधन को मंगल से जोड़ता है तो इस साधना को करने से पहले साधक को गोचर में मंगल की स्थिति उसके अनुकूल पहर और समय का ज्ञान होना आवश्यक है। इस साधना में अनन्त ऊर्जा का विस्तार होता है, अतः सावधानी परहेज़ और नियम पालन अति आवश्यक है। इस साधना का दुरुपयोग प्रयोग करने वाले के लिए विपरीत फल कारक भी हो सकता है । अतः इसका सदुपयोग ही करे।
साधना सामग्री
गाय का घी। अखंड ज्योति के लिए
गुग्गुल धूप इत्यादि
श्री यंत्र
मा दुर्गा का चित्र।
लाल वस्त्र साधक के लिए
लाल आसन जिसपर यंत्र और चित्र स्थापित करना
पंच मेवा
मिष्ठान
लाल फूल गुलाब इत्यादि
इतर (नॉन अल्कोहलिक परफ्यूम)
कुमकुम तिलक आदि के लिए
मूंगे की माला
यह प्रयोग शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ करके नवमी तक पूर्ण करना चाहिए। सर्व प्रथम साधक को मा दुर्गा का चित्र नारियल और श्री यंत्र स्थापित करना चाहिए ।उसके उपरांत संकल्प ले कर ,( संकल्प में अपना नाम अपना गोत्र और किस हेतु यह साधना की जा रही है) , बोले । ज्योति जला कर मा दुर्गा को तिलक ज्योति और पुष्प इत्यादि समर्पित करके संकल्प लेना चाहिए कि मैं यह बीज मंत्र 9 दिन के लिए संकल्प संख्या इतनी करूँगा। मन्त्र का उत्कीलन आवश्यक है ।फिर गणपति जी को याद कर भगवान शिव को याद कर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वे उस कार्य मे सहायक हो। हनुमान चालीसा का पाठ करके भगवती दुर्गा के चंडी कवच का पाठ करना चाहिए ।
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फिर गुरु मंत्र की 1 माला करके हीं साधना प्रारम्भ करनी चाहिए। साधना काल मे साधक यथा शक्ति मौन रह कर सिर्फ ह्रीं का स्मरण रखते हुए अपने कार्यसिद्धि का चिंतन करते हुए , वैचारिक एकाग्रता से अग्रसर रहे प्रतिदिन मंत्र का मूंगे की माला से जाप करता रहे और निश्चित संख्या प्रतिदिन करे। निरंतर संकल्प का स्मरण रहने से एकाग्रता में वृद्धि और संकल्प शक्ति के विकास होगा जो कि साधक की कार्यसिद्धि में अत्यंत सहायक होगी।
इस साधना काल मे विषय विकारों का चिंतन नही कर के और अपने इष्ट का चिंतन करना चाहिए और पूर्ण समर्पण भाव से केवल मंत्र साधना में रत रह कर साधना को पूर्ण करना चाहिए।
प्रत्येक दिन साधना के विराम पे आरती आदि करनी फलदायी होगी। और साधना के अंत मे अर्थात जिस दिन साधना पूर्ण हो उस दिन साधना सामग्री जैसे कि फूल फल इत्यादि जो 9 दिन अर्पित किए को जल प्रवाह कर देना चाहिए और माला जिससे जप हुआ यंत्र और चित्र को अपने घर मे बने हुए मंदिर में रखना चाहिए।
साधना के अंत मे कन्या पूजन करना चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। तथा जप संख्या का दशांश हवन भी करना चाहिए।
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यह साधना साधारण परंतु अत्यंत प्रभावशाली साधना है और साधक यदि पूरे भाव एकाग्रता और समर्पण भाव से इस साधना को करे तो निश्चित ही कार्य सिद्धि होती है। साधक को यथा शक्ति मौन रह कर यह साधना करनी चाहिए ताकि जो ऊर्जा उसमें उत्पन्न हो रही है वह बोलने आदि में व्यय न हो।
इस साधना को करने के बाद में साधक इससे अगली साधनाए करने में सक्षम हो पाता है जो कि परम ऐश्वर्य और श्रेष्ठ विद्याओ से सम्बंधित है। अगली पोस्ट में में आपको ह्रीं का आकर्षण प्रयोग बताऊंगा जिससे कि आप आकर्षक दिखने अपने चुम्बकीय क्षेत्र का विस्तार कर सफलता की और अग्रसर हो सकते है। भौतिक सफलता भी अत्यंत आवश्यक है यदि भौतिक रूप से समृद्ध न हो तो साधना भी भली भांति नही हो पाती।
ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा Uसके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है।
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