पिछले पोस्ट में हमने आपको दस महाविद्या के बारे में जानकारी दी उनके नाम और स्वरूप के बारे में थोड़ा सा अवगत करवाया ।इसी श्रृंखला में अब हम आपको बताएंगे प्रथम महाविद्या महाकाली के बारे में। महाकाली कौन है? उनका स्वरूप कैसा है? और उनके और उनकी साधना की कुछ बाते।
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दस महाविद्या की दीक्षा देते हुए गुरु यह भी देखता है कि शिष्य किस महाविद्या को सिद्ध करने योग्य है। किस महाविद्या में उसकी रूचि है । और किस प्रकार की साधना में वह अग्रसर हो पायेगा। मान लीजिये यदि शिष्य सौम्य स्वभाव का है तो वह उसे कमला या अन्य सौम्य कोटि की साधना दीक्षा उसे दी जाती है। क्योंकि उसका कोमल स्वभाव उस उग्र ऊर्जा को नही सम्भाल पायेगा। और यदि शिष्य बली है तो सौम्य कोटि की साधना स्वभाव से मेल नही खाएगी और शिष्य सफल नही हो पायेगा । अतः आपसे मेरा एक आग्रह ये भी है कि किसी वेबसाइट आदि से मन्त्र पड़ कर साधना न करे अपितु किसी योग्य गुरु की तलाश कर उनकी सेवा कर ही साधना करे। क्योंकि महाविद्या की प्रत्येक साधना स्वयं में शक्तिशाली प्रभावशाली और ऊर्जा से भरी है। और बहुत से ऐसे रहस्य साधनाओ में होते है जो कि गुरु के पथदर्शन से ही प्राप्त होते है। और साधना की बारीकियां जाने बिना साधक सफल नही हो पाता। क्योंकि साधना करते समय अनेको रहस्यमयी अनुभव होते है जो कि आंतरिक और बाह्य दोनो होते है ।कई प्रकार के विघ्न प्रस्तुत होते है जिनका निराकरण गुरु के बिना सम्भव नही। और वेबसाइटे आपको साधना तो बता सकती है परंतु साधना काल के अनुभव समस्या और प्रश्नों का निराकरण नही कर सकती।भद्रकाली |
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अब हम महाकाली के बारे में आपको बताएंगे। महाकाली नाम कौन नही जानता। कोई इन्हें काली माता कहता है तो कोई काली मां कोई कालका मैया तो कोई चामुंडा कहता है। दुर्गा माँ के मुख्य तीन रूपो महाकाली, महालक्ष्मी महासरस्वती में से एक है महाकाली। उग्र स्वभाव के होने के कारण इनका रूप भी भयवह है। गले मे मुंड माला हाथ मे खड्ग और रक्त से भरा खप्पर लिए जिह्वा बाहर निकली और रक्तरंजित ,काले कज्जल के समान रंग वाली उलझे हुए खुले से केश,आंखे लाल बड़ी बड़ी सी मुख क्रोध से भरा और हुंकार करती हुई दानवो का वध करने वाली ये देवी महाकाली है। शक्ति का वह स्वरूप जो कि अनियन्त्रित हो जाए तो अति विध्वंसकारी और स्वयम साक्षात शिव को इन्हें शांत करने के लिए इनके पांव के नीचे आना पड़े। जैसे शिव का दूसरा नाम है महाकाल वैसे ही दुर्गा माँ का भी रूप है महाकाली। महाकाली जितनी विध्वंसक है उतनी ही वात्सल्य भरी भोली और प्रेम से भरी है। साधक को पुत्रवत सम्हालने वाली ये महाकाली जिस पर कृपा करती है उस पर कष्ट नही आता। इनका साधक तीनो लोको में विजय प्राप्त कर उच्च पदासीन होता है। ऐसे साधक से शत्रु तो क्या भूत प्रेत यक्ष गंधर्व आदि सभी भय खाते है और इसके आस पास भी नही फटकते। ऐसा साधक निर्भय वीर और ऊर्जा से भरा होता है। जैसे कि दुर्गा सप्तशती में भी लिखा हैनिर्भयो जायते मर्त्य:, संग्रामेष्वपराजित:।
त्रैलोक्ये च भवेत् पूज्य:, कवचेनावृत: पुमान्।।49
इदं तु देव्या: कवचं, देवानामपि दुर्लभम्।
य: पठेत् प्रयतो नित्यं, त्रि-सन्ध्यं श्रद्धयान्वित:।।50
देवी वश्या भवेत् तस्य, त्रैलोक्ये चापराजित:।
जीवेद् वर्ष-शतं साग्रमप-मृत्यु-विवर्जित:।।51
नश्यन्ति व्याधय: सर्वे, लूता-विस्फोटकादय:।
स्थावरं जंगमं वापि, कृत्रिमं वापि यद् विषम्।।52
अभिचाराणि सर्वाणि, मन्त्र-यन्त्राणि भू-तले।
भूचरा: खेचराश्चैव, कुलजाश्चोपदेशजा:।।53
सहजा: कुलिका नागा, डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरीक्ष-चरा घोरा, डाकिन्यश्च महा-रवा:।।54
ग्रह-भूत-पिशाचाश्च, यक्ष-गन्धर्व-राक्षसा:।
ब्रह्म-राक्षस-वेताला:, कूष्माण्डा भैरवादय:।।55
अतः देवी दुर्गा के चंडी रूप महाकाली का साधक किसी आभिचार कर्म मन्त्र तन्त्र के प्रभाव में न आने वाला होता है।सभी प्रकार की शक्तियां भूत पिशाच यक्ष गन्धर्व डाकिनी आदि उसे अपना प्रभाव
नही डाल पातीऔर उससे दूर रहती है। ब्रह्म राक्षस तक साधक पर प्रभाव हीं होता है। निर्भयता का प्रतीक महाकाली स्वयं साधक की रक्षा करती है।
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भगवती महाकाली की साधना अत्यंत कठिन होती है। इसमें साधक को बहुत धैर्य पूर्ण और पूर्ण समर्पण श्रद्धा और गुरु कृपा की आवश्यकता होती है। महाकाली की साधना करने के लिए सर्व प्रथम तो साधक में वीर भाव होना चाहिए। क्योंकि इनकी साधना में पग पग पर कठिनाइयां है। जहाँ यदि साधक कमज़ीर हृदय वाला हो तो कठिनाई में पड़ जाता है।भगवती महाकाली की साधना में गोपनीयता और सहनशीलता स्वयं पर नियंत्रण और वीरता अति आवश्यक है।महाकाली के नाम से ही समझ आता है कि काल से भी महान अर्थात काल से दो अर्थ निकलते है एक है समय दूसरा है मृत्यु। महाकाली का साधक भी कुछ ऐसा ही होता है। एक तो समय का उस पर प्रभाव नही आता अर्थात वह रूपवान युवा और सदैव अपनी उम्र से कम लगता है जैसे कि समय उसके लिए ठहर गया हो। दूसरा महाकाली का साधक कभी किसी भी कारण से अकाल मृत्यु को प्राप्त नही होता। आठ मय ठ हरने का अर्थ यह भी है कि वह दीर्घायु को प्राप्त होता है।
तामसी विद्या होने के कारण इसकी कुछ क्रियाओ में मास मदिरा मैथुन आदि का भी प्रयोग होता है। इस महाविद्या की श्मशान क्रियाये भी है और अन्य क्रियाये भी परन्तु श्मशान क्रियाओ का उल्लेख और प्रचलन इस महाविद्या में अधिक है क्योंकि माँ का प्रमुख निवास श्मशान है। रक्तबीज जैसे राक्षस का वध करने वाली गए महाकाली सब प्रकार के कष्टों का निवारण करती है। इनकी पूजा का समय गुप्त नवरात्र होते है या फिर कोई भी कृष्ण पक्ष। काल चक्र की स्वामिनी भगवती महाकाली के कई रूप है जिनमे दक्षिण काली, भद्रकाली ,कामकला काली, गुह्य काली है।
भगवती श्मशान में महाकाल जी के जांघ पर विराजमान है जिनके कारण इनका और महाकाल का निवास स्थान श्मशान ही माना गया है और इसी वजह से इन्हें श्मशान काली भी कहा जाता है। इनके ग्रन्थ काली विलास तन्त्र और अन्य गर्न्थो में साधना का जो उल्लेख है उमसे तीन प्रकार की साधना मुख्य है पशु भाव साधना, वीर भाव साधना और दिव्य भाव साधना।
पशुभाव में साधक प्रथम चरण की साधना करता है ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक होता है और साधक जप यज्ञ आदि के द्वारा साधना करता है मास मंदिर आदि से पूर्ण रूप से परहेज़ रखता है योग ध्यान आदि से आंतरिक शुद्धि और अन्य उपयो से बाह्य शुद्धि करके ही साधना पे बैठता है।साधक को आहार विचार और व्यवहार अत्यंत सात्विक रखते हुए साधनाबपथ पर अग्रसर होने होता है। जैसे जैसे साधक साधना करता जाता है तो उसे वीर भाव का ज्ञान दिया जाता है और इसके रहस्यो से अवगत करवाया जाता है। वीर भाव मे साधक द्वितीय चरण पर पहुंचता है जिसमे की साधक पर पवित्रता आदि का बंधन नही रहता। मास मदिरा आदि से देव पूजन किया जाता है और साधक को पवित्रता अपवित्रता बुरे भले के भेद से ऊपर उठ कर स्वयं को शक्ति का ही स्वरूप मान कर साधना करनी होती है। तृतीय है दिव्य भाव दिव्य भाव मे साधक स्वयं में शिव और शक्ति के मिलन का अनुभव करता है। सृष्टि के रहस्यो को जानने समझने की शक्ति रखता है साधक अहंकार लज्जा घृणा तथा अन्य विषय विकारों को छोड़ कर इनसब से ऊपर उठ कर सम्पूर्ण सृष्टि मेरी है और में सृष्टि का ऐसा जानता है। इस अवस्था के साधक के लिए श्मशान हो या घर स्वर्ण हो या मिट्टी , शत्रु हो या मित्र अब एक से है। इन सब के प्रभाव में ना आ कर वह शुद्ध और सत्य सृष्टि स्वरूप का आनंद लेता है।
आगे पोस्ट में हम आपसे और जानकारी इस महाविद्या के बारे में सांझा करेंगे कि यह सद्गन कैसे की जा सकती है। किस प्रकार से क्या पद्धतियां इस महा विद्या साधना में प्रचलित है और किस प्रकार और स्वभाव का साधक इसने सफल होता है। साधना मन्त्र और विधियों का कुछ उल्लेख भी देंगे परन्तु यह भी साथ मे कहते है कि बिना सब जाने समझे साधना करना सफलता नही देता अपितु मानसिक परेशानी ही देता है। अतः पहले स्वयं को जाने अन्य साधनाये करे फिर ही महाविद्या की ओर अग्रसर हो।
ब्लॉग के माध्यम से हम यह कोशिश करेंगे के तंत्र के मूल स्वरूप को समझ कर हम आपको महादेव भगवान शंकर और माँ दुर्गा के इस सृष्टि रहस्य से अवगत करा सके। और गुरु शिष्य परम्परा से आपको अवगत करा सके जो कि तंत्र मंत्र और इनके ज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण भाग है। आपके प्रश्न जिज्ञासा या परेशानी के लिए आप हमे फ़ोन कर सकते है।
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